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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

भी चाहता हूँ तो भी मैं उसे छिपा नहीं पाता। इसलिए ऐसी परिस्थितिमें विनम्र भावसे प्रायश्चित्त करके जितनी सान्त्वना मिलनी सम्भव है उतनी ही प्राप्त कर लेनेके सिवा कोई चारा नहीं है । यदि मैं अपने निकट आश्वस्त हूँ कि मैं अपने निजी प्रायश्चित्तों- का प्रकाशन जनतामें नहीं करना चाहता, तो मेरे लिए यही काफी है। सार्वजनिक प्रायश्चित्तोंकी वास्तविक क्षमता के बारेमें मुझे जरा भी सन्देह नहीं है, इसलिए यदि हर समय उनका तात्कालिक परिणाम नजर नहीं आता तो उससे मेरी हदतक कोई अन्तर नहीं पड़ता । यदि प्रत्येक कार्यका, चाहे वह भला हो या बुरा, मूर्त परि- णाम तत्काल ही उपलब्ध हो जाये तो आस्थाका कोई महत्व नहीं रहेगा। परिणामकी अनिश्चिततासे ही मनुष्य कसौटीपर कसा जाता है, उसीसे वह नम्र बनता है और उसीसे उसकी आस्था और ईमानदारीकी परीक्षा होती है ।

अनुकरणीय

पाठक जानते हैं कि श्री शुएब कुरैशी इस समय हैजाजके प्रतिनिधि मण्डलके साथ अरब गये हुए हैं। उन्होंने मुझे चरखा मण्डलके लिए इस महीनेका सूत वहाँसे भेजा है। यदि संघके सभी सदस्य उनका अनुकरण करें और वे चाहे कहीं हों, कैसी भी स्थिति में क्यों न हों, अपना सूत भेजते रहें, तो मण्डलका उस उद्देश्यके लिए बड़ा कल्याणकारी प्रभाव पड़ेगा जिसके लिए वह आरम्भ किया गया है। एक साथ या अपने हिस्सेका द्रव्यरूप चन्दा एक हो बारमें स्वयं या किसीके मार्फत भेजना आसान है। लेकिन अपनी मेहनतसे तैयार की हुई चीज नियमित समयपर देते रहनेके लिए संयत बुद्धि और बड़ी सावधानी की जरूरत है। मैं आशा करता हूँ कि श्री शुएब कुरैशीकी तरह दूसरे सदस्य भी अपनी जिम्मेदारी समझेंगे ।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २४-१२-१९२५

७७. दक्षिण आफ्रिकाकी समस्या

दक्षिण आफ्रिकाका शिष्टमण्डल जो कागज पत्र अपने साथ लाया है उसे जितना अधिक पढ़ो समस्या उतनी ही अधिक मुश्किल मालूम होती है । डा० मलानका खयाल है कि प्रस्तावित कानूनसे' १९१४ के गांधी- स्मट्स समझौते का कहीं भी भंग नहीं होता । उनसे मिलने जो शिष्टमण्डल गया था, उसके नेता श्री जेम्स गॉडफेने, जो आज शिष्टमण्डल के सदस्यको हैसियतसे हिन्दुस्तान आये हुए हैं, डा० मलानके इस कथनका सफलता के साथ विरोध किया था । उस समझौते में सत्याग्रहसे या उस संघर्षसे, जो उन दिनों पैसिव रेजिस्टेन्सके नामसे प्रसिद्ध था, सम्बन्धित विषयोंके बारेमें अन्तिम निर्णय ले लिया गया था । रंगभेद या जातिभेदके आधारपर बनाये जानेवाले कानूनोंका बनना सदाके लिए रोक देनेकी दृष्टिसे ही वह संघर्ष किया गया था । यह मुख्य

१. क्षेत्र संरक्षण तथा प्रवास पंजीयन ( अतिरिक्त उपबन्ध ) विधेयक ।