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कुछ तथ्यपूर्ण आँकड़े

कि प्रति व्यक्ति अन्नकी खेतीका रकबा ६० एकड़से बढ़कर ६४ एकड़ हो गया है, किन्तु रकबेमें यह बढ़ती भ्रमात्मक है । १९०१ में लोगोंको भरपेट अन्न नहीं मिलता था। १९२१में अन्नकी यह मात्रा और भी कम हो गई, क्योंकि यदि हमे आबादी बढ़नेके साथ-साथ पोषक तत्त्वोंकी मात्रा भी उसी अनुपातमें बढ़ानी हो तो यह लाजिमी है कि जितनी आबादी बढ़े, अन्नोत्पादक क्षेत्र उसकी अपेक्षा अधिक बढ़ाया जाये । ऊपर दिये गये आंकड़े मुझे यह बताने के लिए तैयार किये गये हैं कि कपासकी खेती- का रकवा तुलनात्मक दृष्टिसे कितना बढ़ा है। इस रकबेका ९६ लाख एकड़से बढ़कर १५० लाख एकड़ हो जाना बहुत ही आश्चर्यजनक है। इसमें कोई शक नहीं कि इससे किसानोंको ज्यादा रुपया मिला है, किन्तु इससे अन्नके भाव भी बढ़ गये हैं। परिणामस्वरूप लोगोंकी भुखमरी बढ़ी है और समाजके निम्नवर्गके लोगोंको अपना पेट भरने लायक अनाज खरीदना भी दिनपर-दिन कठिन होता जा रहा है। क्योंकि यह याद रहे कि एक ओर कपासकी खेती करनेवाले लोगोंने अन्नके भाव बढ़ा दिये है, किन्तु लोग दूसरी ओर जो कपासकी खेती नहीं करते और जिनकी संख्या बहुत बड़ी है अपनी कय-शक्ति नहीं बढ़ा पाये हैं। यदि इन आँकड़ोंकी और अधिक छान- बीन की जाये तो यह पता चलेगा कि खेतीका क्षेत्र बढ़नेका अर्थ है चरागाहोंके क्षेत्रमे तदनुसार कमी। इसका फल यह होगा कि या तो पशु हमारे खाद्यान्नमें हिस्सा बॅटाने लगेंगे या हमारी ही तरह उन्हें भी पोषक तत्त्व नहीं मिलेंगे और वे हमें कम दूध देंगे । वास्तवमें हुआ भी यही है। यही कारण है कि जिन लोगोंने पशु-समस्या पर विचार किया है उनका कहना है कि हमारे पशु हमारी जमीनपर भाररूप हो गये हैं। उनका भाररूप होना जरूरी नहीं है। इन आंकड़ों को देखकर भू-राजस्व प्रणालीकी पूरी जाँच-पड़ताल करनेकी जरूरत मालूम होती है। यह जरूरी मालूम होता है कि कपासकी खेती और अन्नकी खेतीके सापेक्ष महत्त्वका वैज्ञानिक अध्ययन किया जाये और पशु-वंशकी वृद्धि, पशु-पालन और पशुओंको खिलाने-पिलाने के तरीकोंको वैज्ञानिक रूप दिया जाये । इन ऑकड़ोंसे यह भी विदित हो जाता है कि खेतीके साथ-साथ, सहायक धन्धेके रूपमें कुटीर उद्योगकी नितान्त आवश्यकता है। संसारका कोई भी कृषिप्रधान देश, यदि उसके लोग केवल खेतीपर ही या मुख्यतः खेतीपर ही निर्भर रहते हों, प्रतिव्यक्ति औसतन एक एकड़से कम खेतीकी जमीनसे सम्भवतः अपनी आबादीका पेट नहीं भर सकता है।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २४-१२-१९२५