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८०. भाषण : कानपुरकी स्वदेशी प्रदर्शनीमें

२४ दिसम्बर, १९२५

प्रदर्शनीका उद्घाटन करते हुए गांधीजीने कहा कि मैं इसे एक पुण्य कार्य मानता हूँ । सरोजिनी देवीने मुझे बताया कि यहाँ इस सप्ताहमें ३० सम्मेलन होने- वाले हैं और इनमें से बहुतसे सम्मेलनोंमें मुझे सभापति पद गृहण करनेके लिए कहा गया है। मैंने अपनी विवशता प्रकट कर दी है; क्योंकि मैं अपनेको केवल इस स्वदेशी प्रदर्शनीका उद्घाटन करनेके योग्य मानता हूँ। में हिन्दू-मुस्लिम एकताका पक्षपाती जरूर हूँ पर यदि उसमें खद्दरको स्थान नहीं दिया जायेगा तो मैं उसे भी स्वीकार न करूँगा ।

मैं केवल खद्दर ही का स्वप्न देखा करता हूँ। मैंने प्रदर्शनी खोलनेकी जिम्मे- दारी उसी समय ली, जब जवाहरलालजीने मुझे इस बातका विश्वास दिला दिया कि इस प्रदर्शनीमें कोई भी विदेशी चीज नहीं रखी जायेगी। मैं अपने ५ वर्षके खद्दर- सम्बन्धी अनुभवके आधारपर यह कह सकता हूँ कि हमने पर्याप्त प्रगति कर ली है। १९२० में मैंने अपने हाथसे सत्रह आने गज खद्दर बेचा था और उसे लोग खुशी से खरीदते और पहनते थे। आजकल अच्छा खद्दर नौ आने गज मिल सकता है। क्या यह उन्नति श्लाघनीय नहीं है? शुरू-शुरूमें जो लोग खद्दरकी टोपियाँ पहनते थे, लोग उन्हींको खद्दरधारी समझ लेते थे। पर अब यह बात नहीं है। ऐसे लोगों की संख्या जो पूरी तौरपर खद्दर पहनते हैं, और दूसरा कपड़ा पहनते ही नहीं हैं, काफी बढ़ गई है। बहुतसे लोगोंने खद्दरके प्रति सहानुभूति दिखलाई और प्रतिज्ञा भी की पर खद्दर पहना नहीं। इसके लिए मैं क्या कर सकता हूँ? कोई कारण नहीं था कि मैं इनकी बातोंपर अविश्वास करता । लोगोंने अपनी प्रतिज्ञा पूरी नहीं की, इसी कारण हम आशाके अनुरूप, १ वर्षके अन्दर स्वराज्य प्राप्त नहीं कर सके। आज भी मे आपको पूरे विश्वासके साथ यकीन दिलाता हूँ कि यदि आप सब विदेशी तथा देशी मिलोंके कपड़ोंका पूरा-पूरा बहिष्कार कर दें तो एक वर्षसे कम समयमें ही हमें स्वराज्य मिल सकता है। पर आपको मेरा यह कहना अक्षरशः मानना पड़ेगा।

इसके पश्चात् गांधीजोने कहा कि चरखोंकी संख्या और किस्म दोनों में उन्नति हुई है। उन्होंने यह भी कहा कि मैंने तो अपने हस्ताक्षरोंका भी मूल्य निर्धारित कर रखा है; जो व्यक्ति मेरे हस्ताक्षर चाहता है, जब खद्दर पहननेका संकल्प कर लेगा तभी वे उसे मिल सकते हैं। (हर्षध्वनि)

[ अंग्रेजीसे ]
लीडर, २६-१२-१९२५