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८१. भाषण : अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीकी बैठक में

[ कानपुर ]

२४ दिसम्बर, १९२५

महात्मा गांधीने अ० भा० कांग्रेस कमेटीके अध्यक्ष पदसे निवृत्त होते हुए और "कांग्रेस सरकारकी बागडोर" औपचारिक रूपसे श्रीमती सरोजिनी नायडूको सौंपते हुए कहा कि कमेटीके सभी सदस्योंने मेरा सदा समर्थन किया, इसके लिए मैं उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट करता हूँ । कमेटीके सदस्योंने एक बार भी मेरे निर्णयोंके प्रति शंका प्रकट नहीं की और मेरे सभी आदेशोंका तुरन्त पालन किया। अगर वे यही नीति उन प्रस्तावोंके सम्बन्धमें भी रखते जिन्हें कि उन्होंने स्वयं पास किया था तो हमारी स्थिति अधिक अच्छी और दृढ़तर हो गई होती। अब कांग्रेसके नेतृत्वका भार श्रीमती सरोजिनी नायडूके कन्धोंपर आया है। मेरी यही कामना है कि उन्हें पूरी सफलता मिले। ईश्वरसे मेरी प्रार्थना है कि उनके कालमें हमारी स्थिति अधिक अच्छी बने और जो बादल मंडरा रहे हैं, छिन्न-भिन्न हो जायें । श्रीमती सरोजिनी नायडूने दक्षिण आफ्रिकामें जाकर भारतवासियोंकी अत्यन्त आश्चर्यजनक सेवा की है। अपनी काव्यशक्तिसे उन्होंने वहाँके यूरोपीयोंको मुग्ध तथा अपनी विवेकशक्ति और मधुर संभाषण - कलाके द्वारा विरोधियोंका मुँह बन्द कर दिया, अपनी राजनीतिज्ञता- पूर्ण कार्यशैलीसे उन्होंने सिंहका सामना उसकी मांदमें हो किया। फिलहाल तो एशिया विरोधी कानूनका पास होना स्थगित हो गया है। आज दक्षिण आफ्रिकाके यूरोपीय यह समझने लगे हैं कि अगर श्रीमती सरोजिनी नायडू जैसे व्यक्ति दक्षिण आफ्रिका आयें तो कोई झगड़ा होगा ही नहीं । दक्षिण आफ्रिका निवासी मेरे अंग्रेज दोस्तोंके पत्र मेरे पास बराबर आते हैं और वे कहते हैं कि श्रीमती सरोजिनी नायडूको या उन्हीं की तरहके अन्य व्यक्तियोंको फिर दक्षिण आफ्रिका भेजा जाये। इन सब बातोंसे प्रकट होता है कि वे बहुत-कुछ कर सकती हैं और कांग्रेसका नेतृत्व करनेके योग्य हैं; लेकिन में उन्हें कांग्रेस कोषके सम्बन्ध में सावधान करता हूँ कि वे अत्यन्त उदार न हो जायें जैसा कि स्त्रियाँ साधारणतः हुआ करती हैं। कांग्रेसका कोष इस समय सम्भवतः १३ लाखसे अधिक नहीं है । '

[ अंग्रेजीसे ]

हिन्दुस्तान टाइम्स, २७-१२-१९२५

१. इस चेतावनीका उत्तर देते हुए सरोजिनी नायडूने कहा कि रुपये-पैसेसे सम्बन्धित सारा काम मैं महात्मा गांधी- जैसे जाने-माने दक्ष व्यक्तिको सौंप रही हूँ ।

२९-२२