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८२. भाषण : कानपुर-कांग्रेस अधिवेशनमें '

२४ दिसम्बर, १९२५

बाबा साहब परांजपे और श्री साम्बमूर्तिने मुझसे यह प्रस्ताव लौटा लेनेके लिए कहा है। मैं ऐसा किस अधिकारसे करूँ ? यह तो केवल एक इतफाककी ही बात है कि उसे पेश करनेका भार मुझपर आ पड़ा है। यह प्रस्ताव तो कार्यकारिणी समितिका है। फिर मुझसे 'अपील' क्यों की जा रही है ? यह न मुझे शोभा देता है और न आपको। आखिर में कौन हूँ ? मुझे भूल जाइए। यदि आप लोग लोकतन्त्र चाहते हैं तो प्रस्तावक किस श्रेणीका नेता है इसका खयाल छोड़ दें, प्रस्तावकी योग्यताका ही विचार करें। इसके अतिरिक्त आप मुझसे किस बातको वापस लेनेका आग्रह कर रहे हैं ? मेरे अन्तस्तलमें बैठे हुए अत्यन्त प्रिय जीवन सिद्धान्तोंको ?

श्री जयकर और केलकरने भी एतराज उठाये हैं। आप लोग यह भूल जाते हूँ कि मताधिकारका आधार ध्येयपर निर्भर होता है। व्यवहारतः अमुक कार्य दुर्गम है, क्या महज इसलिए हम उससे विमुख हो जायेंगे ? हम लोगोंके लिए स्वराज्य प्राप्त करना मुश्किल है तो फिर हम उसकी बात क्यों नहीं छोड़ देते ? ...

यदि मुझे इस बातका यकीन हो जाये कि कांग्रेसके एक करोड़ सदस्य बन जानेपर ही स्वराज्य प्राप्ति सम्भव हो जायेगी तो मैं चार आनेका चन्दा भी निकाल दूं, उम्र सम्बन्धी प्रतिबन्ध भी हटा दूं. - कोई भी शर्त न रखूं । अबतक जो कार्य किया जा चुका है उसपर यदि पानी फेरना है तो हम यही प्रस्ताव पास करें कि जो चाहे सो कांग्रेसका सदस्य हो सकता है। लेकिन भाई, कांग्रेसके लिए जो व्यक्ति तनिक भी शरीर श्रम करनेके लिए तैयार न हो, क्या उसे कांग्रेसी कहलाने में शर्म मालूम न होगी? यदि आप लोगोंको सचमुच विदेशी कपड़ेका बहिष्कार करना है तो मिलोंके कपड़ेका विचार त्याग दें। मैं मिलोंके प्रान्तका ही निवासी हूँ। और मिल-मालिकोंके साथ मेरा बहुत मीठा सम्बन्ध है; लेकिन मैं यह जानता हूँ कि देशके संकटकालमें उन्होंने देशका साथ कभी नहीं दिया है। वे साफ कहते हैं कि हम देशप्रेमी नहीं हैं, हमें तो धन-संचय करना है। यदि सरकार तय कर ले तो वह सभी मिलें बन्द करा सकती है; बाहरसे मशीनोंका हिन्दुस्तानमें आना रोक दे सकती है, लेकिन सरकारमें इतना सामर्थ्य नहीं कि वह हमारे चरखों और तकुओं-

१. विषय समितिमें मतदान सम्बन्धी इस प्रस्ताव द्वारा यह सिफारिश की गई थी कि गत सितम्बर में कांग्रेस विधानमें जो परिवर्तन स्वीकृत किये गये थे, वे अब पुनः स्वीकृत किये जायें। उनमें से एक सुझाव यह भी था कि अपरिवर्तनवादियों और स्वराज्यवादियोंके बीच समझौतेके रूप में सूत-मताधिकार वैकल्पिक रखा जाये; अर्थात् वार्षिक चन्देके तौरपर था तो चार आने दिये जायें या खुदका काता २००० गज सूत (कांग्रेसको ) दिया जाये। और जो व्यक्ति खद्दर न पहनता हो उसे मत देनेका अधिकार न हो।

२. मूलमें यहां कुछ छूट गया है।