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पत्र : एक भाईको

तुम्हारी इच्छा मुझे ठीक नहीं लगी। जवानी में मनुष्य पुरुषार्थ कर सकता है। समझ- दार व्यक्तिके लिए जवानी उच्छृंखल और स्वच्छन्द आचरणका नहीं, संयम सीखनेका समय है।

सम्भव है, तुम पत्रकी बात न समझ सको। चि०. से समझना। फाड़कर फेंक मत देना। अत्यधिक कामके बोझसे दबे होनेपर भी मैंने तुम दोनोंको याद किया है। थोड़ेसे शब्द लिखनेकी इच्छा थी; पर पत्र लम्बा और गम्भीर हो गया। इस लिए सँभाल कर रखने के लिए कहता हूँ ।

[ गुजरातीसे ]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे

सौजन्य : नारायण देसाई

८६. पत्र : एक भाईको

[२६ दिसम्बर, १९२५ ][१]


चि०...

तुम्हारा पत्र पाकर अब मैं निश्चिन्त हो गया हूँ। मुझे डर था कि कहीं भाई. . . तुम्हें गलत रास्तेपर न ले जायें, सो डर नहीं रहा। हम अच्छे-बुरे व्यक्तियों को जानते हुए भी उनपर स्नेह रखें, यही हमारा धर्म है। हम दूसरोंमें कोई बुराई देखें ही नहीं, कई बार तो प्रेम शब्दकी हम यही व्याख्या करते हैं । चि०. ने जो बात छुपाई सो ठीक तो नहीं थी, पर मुझे उसका दुःख नहीं है, केवल दया आई। उसे कबूल करते समय वह घबरा गई होगी। हम घोरसे-घोर पाप निडर होकर कर डालते हैं, पर उन्हें स्वीकार करते हुए घबराते हैं। पर इस पृथ्वीपर ऐसे लोग कितने होंगे जो अपने दोषोंको पहचानकर उन्हें सबके सामने प्रकट कर दें । क्या करती ? अब ईश्वर उसकी रक्षा करे । तुमने भाई...से पिछली सारी बातें कह दीं, सो अच्छा ही किया ।

बापूके आशीर्वादबापूके

[ गुजरातीसे ]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे

सौजन्य : नारायण देसाई

  1. साधन-सूत्रके अनुसार।