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८७. भाषण : कानपुर-अधिवेशनमें

२६ दिसम्बर, १९२५

कांग्रेसके कानपुर-अधिवेशनमें दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंकी स्थितिके विषयमें कांग्रेसकी ओरसे एक प्रस्ताव गांधीजीने पेश किया था। निम्नलिखित भाषण उसी अवसरका है। पहले वे हिन्दीमें बोले :

यदि वर्गक्षेत्र विधेयकको कानूनका रूप मिल गया तो ऐसे प्रत्येक भारतीयको जिसके मनमें किंचित भी स्वाभिमान होगा दक्षिण आफ्रिका छोड़कर चले जानेके लिए विवश होना पड़ेगा। उसकी यह विवशता प्रत्यावर्तनसे भी बदतर होगी; प्रत्यावर्तित व्यक्तियोंको किसी प्रकारका मुआवजा नहीं दिया जायेगा और उन्हें कानूनके नाम- पर बाहर निकाल दिया जायेगा यह काम एशियाई लोगोंका दक्षिण आफ्रिकासे नामोनिशान मिटा देनेकी खातिर गोरी जातिवालोंके दृढ़ संकल्पका सूचक होगा | वहाँ बसे हुए भारतीय समाजके अत्यन्त प्रतिष्ठित व्यक्तियोंको- - डाक्टरों तथा गॉडफ्रे जैसे बॅरिस्टरोंको भी, जो शिष्टमण्डलके एक सदस्य भी हैं, जिनका लालन-पालन शिक्षा- दीक्षा सब-कुछ दक्षिण आफ्रिकामें ही हुआ है और जो भारतमें प्रथम बार आ रहे हैं -- नहीं रहने दिया जायेगा। इस प्रस्ताव द्वारा समस्याके समाधानके रूपमें तीन बातें कही गई हैं। पंच फैसला कराया जाये, गोलमेज परिषद् बुलाई जाये और अगर इन दोनों में से एक भी सम्भव न हो तो भारत सरकार सम्राट्की सरकारसे निवेदन करे कि वह अपने विषधाधिकारका प्रयोग करके प्रस्तावपर स्वीकृति न दे। इस प्रस्तावमें भारतीयोंसे यह भी कहा गया है कि वे अपने देशवासियोंके संकट कालमें उनका साथ दें और उनकी पूरी मदद करें। यदि दक्षिण आफ्रिकाके भारतीय सत्या- ग्रह करनेको ठानें तो यहाँके भारतीयोंका कर्तव्य है कि धनसे उनकी यथाशक्ति सहायता करें। इस महत्वपूर्ण समस्याके सम्बन्ध में सत्याग्रह शुरू करने में मुझे खुशी तो होगी; पर बात यह है कि वातावरण अनुकूल नहीं है। यदि भारतके हिन्दू और मुसलमान उन्हें इस बातका विश्वास दिला सकें कि वे शान्तिपूर्ण सत्याग्रह शुरू करनेके बारेमें एकमत हैं और इस बातका भी विश्वास दिला सकें कि दक्षिण आफ्रिका में बसे हुए हिन्दुओं और मुसलमानोंके गाढ़े वक्तमें वे अपने आपसी झगड़े भूल गये हैं तो मैं संघर्ष प्रारम्भ करनेके लिए कटिबद्ध हो जाऊँगा। जबतक यह नहीं हो जाता तबतक संघर्ष वहाँके भारतीय ही चलायें और भारत यथाशक्ति सहायता देकर ही सन्तोष मान ले।

१. मूल हिन्दी भाषण उपलब्ध नहीं है।