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भाषण : कानपुर-अधिवेशनमें

ओरसे यह कहना था कि यद्यपि ट्रान्सवालकी सरकार स्वतन्त्र है फिर भी इसे घरेलू प्रश्न नहीं माना जा सकता ।

संस्कृतियोंका वैषम्य

लॉर्ड लैंसडाउनने कहा था कि जब मैं ट्रान्सवालके भारतीयोंकी तकलीफोंका विचार करता हूँ तब मेरा खून खौलने लगता है । वे मानते थे कि दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंकी तकलीफें भी - अधिक ठीक तो यह कहना है कि ट्रान्सवालके - बोअर युद्धके मुख्य कारणोंमें से एक थीं। अब वे घोषणाएँ आज जब डेढ़ लाख भारतवासियोंकी जान, इज्जत और रोजी ब्रिटिश सरकारको संघ सरकारके साथ युद्ध करनेकी बात क्यों भारतीयोंकी तकलीफें कहाँ विलीन हो गई? जोखिममें आ पड़ी है, नहीं सूझती ?

इस कानूनको बनानेके परिणामोंके सम्बन्धमें मैंने जिस परिस्थितिका वर्णन ऊपर किया है उसके सम्बन्धमें किसीको कुछ भी सन्देह नहीं है । दक्षिण आफ्रिकामें ब्रिटिश भारतवासियोंकी तकलीफें बढ़ती जा रही हैं, इससे भी कोई इनकार नहीं कर सकता। बिशप फिशरने, जो कुछ ही मास पूर्व दक्षिण आफ्रिका गये थे, एक छोटी- सी सुन्दर पुस्तिका लिखी है। यदि आप उसको देखेंगे तो आपको दक्षिण आफ्रिकामें बसे हुए भारतीयोंपर बरपा होने वाली मुसीबतोंका कुछ अन्दाज हो जायेगा। बिशप फिशर निष्पक्ष होकर इस रायपर पहुँचे हैं कि इसमें भारतीयोंका कोई कसूर नहीं है । इन अन्यायोंके लिए तो वहाँके गोरोंका द्वेषभाव और उद्दण्डता ही उत्तरदायी हैं । बिशप फिशरका दृढ़ मत है कि भारतीयोंकी भलमनसीको देखते हुए तो उनके प्रति दक्षिण आफ्रिकाके गोरोंका बर्ताव अधिक अच्छा ही होना चाहिए था । यदि संसारमें न्याय कोई चीज है और यदि अभीतक अधिकारोंके सिरपर राजछत्र है तो दक्षिण आफ्रिकाके गोरोंके लिए उस कानूनको पास करना सम्भव न होता। उस हालत में दक्षिण आफ्रिकाके गोरोंके लिए उस विधेयकको कानूनका रूप दिलाना सम्भव नहीं होता और न यह जरूरी होता कि मैं आप लोगोंका मूल्यवान समय नष्ट करूँ और शिष्टमण्डल अपना धन व्यर्थ ही नष्ट करे ।

लेकिन नहीं। अधिकारकी तूती बोलनेके बजाय “जिसकी लाठी उसकी भैंस ", यही देखनेमें आ रहा है। दक्षिण आफ्रिकाके गोरे हमारे देशवासियोंके प्रति अन्याय करनेपर उतर आये हैं; सो किसलिए ? दो संस्कृतियोंका परस्पर विरोधी होना इसका कारण है । ये शब्द मेरे नहीं हैं, जनरल स्मट्सके हैं। वे इस विरोधको सहन नहीं करते । दक्षिण आफ्रिकाके यूरोपीय यह मानते हैं कि यदि हिन्दुस्तान में से आनेवाले इन दलोंको दक्षिण आफ्रिकामें आनेसे रोक न दिया जायेगा तो उन्हें भय है कि पूर्वके लोग उन्हें पीस डालेंगे। किन्तु समझमें नहीं आता कि हम लोग उनकी संस्कृतिको नष्ट कैसे कर सकते हैं ? हमारे यहाँके सभी स्त्री-पुरुष मितव्ययी होते हैं; क्या इसी कारण उनकी संस्कृति नष्ट हो जायेगी ? क्या वह इस कारण भ्रष्ट हो जायेगी कि हम लोगोंको शाकभाजी या फलोंकी फेरी लगाकर ये चीजें दक्षिण आफ्रिकाके किसानों के सोलहों दरवाजे-दरवाजे पहुँचाने में शर्म नहीं लगती? दक्षिण आफ्रिकाके किसानोंके पास