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८८. एक प्रेमीका सन्ताप

एक सज्जनने अपने मनके भाव इस तरह व्यक्त किये हैं:

इस पत्रको मैंने कुछ छोटा कर दिया है। उसके विषय असम्बद्ध मालूम होंगे लेकिन इस सबमें मनकी आग तो स्पष्ट ही है ।

मैं किसानोंके सम्बन्धमें 'नवजीवन' में अधिक कुछ नहीं लिखता, क्योंकि मैं एक व्यावहारिक व्यक्ति हूँ और ऐसे विषयोंपर नहीं लिखता जिनके सम्बन्धमें मैं या पाठक इस समय कुछ भी नहीं कर सकते ।

'नवजीवन' का सम्पादन ग्रहण करते समय आरम्भ में ही उसपर 'भारत माता' की जो तस्वीर दी गई थी उसमें किसानों को ही प्रधान स्थान दिया गया था। किसानों की स्थिति सुधारनेकी आवश्यकता तो बहुत है, लेकिन जबतक राज्यकी बागडोर किसानोंके प्रतिनिधियों के हाथमें नहीं आती अर्थात् जबतक स्वराज्य अथवा धर्म- राज्य नहीं हो जाता तबतक उनकी स्थिति सुधारना असम्भव नहीं तो कठिन अवश्य है । किसानोंको पूरा 'चबेना' तक नहीं मिलता इसे मैं भली-भाँति जानता हूँ और इसीलिए तो मैंने चरखेके पुनरुद्धारका सुझाव रखा है।

सम्बन्धित कानूनों को सुधारनेकी जितनी आवश्यकता है उतनी ही आवश्यकता है किसानोंको आन्तरिक अवस्था सुधारनेकी भी। और वह तो कुछ अंशोंमें भी तभी सम्भव होगा जब ऐसे असंख्य सेवक निकल पड़ेंगे जो अन्य क्षेत्रोंसे मुँह मोड़कर फलेच्छा छोड़कर केवल गाँवोंमें ही आसन जमाकर बैठ जायेंगे। युग-युगकी बुरी आदतें एक या दो सालमें दूर नहीं हो सकतीं ।

जमींदारों और ताल्लुकेदारोंके पाससे हजारों बीघा जमीन जबरन् नहीं छीनी जा सकती। जमीन उनसे लेकर दी भी किसे जाये ? ताल्लुकेदारों और जमींदारोंकी जमीनें छोनने की कोई आवश्यकता नहीं। उनका हृदय परिवर्तन करनेकी आवश्यकता है। जमींदारों और ताल्लुकेदारोंके हृदयमें रामका निवास हो - दयाभाव उत्पन्न हो तो वे अपने किसानोंके रक्षक बनेंगे और अपनी जमीनको किसानोंकी ही जमीन मान- कर मुख्य पैदावारका मुख्य हिस्सा उन्हींको देकर स्वयं केवल आजीविकाके लिए यत्कि- चित ही लेंगे। यदि कोई कहे कि ऐसा युग तो जब चन्द्र और सूर्यका उदय होना बन्द होगा तभी आ सकेगा; तो मैं यह नहीं मानता । आज संसारकी प्रवृत्ति ही शान्ति और अहिंसाके मार्गकी ओर जा रही है। पशुबलका मार्ग तो युगोंसे अपनाया जा रहा था और उसका आश्रय आज भी लिया जा रहा है, किन्तु कोई यह न

इसमें लेखकने शिकायत की थी कि गांधीजी नवजीवन और यंग इंडिया में किसानोंके सम्बन्ध में कुछ नहीं लिखते। उसने जमींदारों और साहूकारों द्वारा किसानोंके शोषणका उल्लेख करते हुए गांधीजीसे विधवा-विवाह, दहेज-प्रथा, मृत्यु-भोज तथा अन्य सामाजिक कुरीतियोंके विषय में जोर देकर लिखनेका अनुरोध किया था।