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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

भी शरीरके इस भागपर वस्त्र लपेटना पड़ता है। दक्षिण आफ्रिकामें इसीलिए उस मापके कपड़ोंकी बहुत खपत होती है। यूरोपसे हर साल लाखों ऐसे कम्बल और चादर आते हैं। पुरुषोंके लिए कमरसे घुटनों तकका भाग ढँकना आवश्यक होता है। इसलिए उनमें यूरोपके लोगोंके उतरे हुए कपड़े पहननेका चलन शुरू हो गया है। जो लोग ऐसे कपड़े नहीं पहनते वे नाड़ेदार चड्डियाँ पहनते हैं। ये सब कपड़े यूरोपसे ही आते हैं।

इन लोगोंका मुख्य आहार मक्का और मिल जानेपर यदा-कदा माँस है । ये लोग मसालोंसे बिलकुल ही अपरिचित हैं। यदि उनके खानेमें मसाला हो अथवा थोड़ी-बहुत हल्दी भी हो तो वे नाक सिकोड़ेंगे; और जो पूरे जंगली कहे जाते हैं वे तो उसे छुयेंगे भी नहीं। आम जुलूके लिए खड़ी मक्का उबाल कर और नमक लगा- कर एक बार में एक सेर खा जाना कोई आश्चर्य की बात नहीं। ये लोग मक्काको पीसकर उसका दलिया बनाकर भी खाते हैं और उसमें सन्तोष मानते हैं। उन्हें जब मांस मिल जाता है तब वे उसे कच्चा अथवा उबालकर या भूनकर केवल नमक लगाकर खा लेते हैं। मांस किसी भी पशु-पक्षीका हो उसे खानेमें उन्हें कोई झिझक नहीं होती ।

उनकी जातियोंके नाम ही उनकी भाषाओंके नाम भी हैं। उनकी कोई लिपि या वर्णमाला नहीं है। 'बाइबिल' और अन्य पुस्तकें हालमें हब्शियोंकी भाषामें रोमन लिपिमें छापी गई हैं। जुलू भाषा अत्यन्त मधुर है। उसके शब्दोंके अन्तमें ज्यादातर 'आ'की ध्वनि होती है, इसलिए भाषा कानोंको कोमल और मधुर लगती है। मैंने पढ़ा है और सुना भी है कि उसके शब्दोंमें अर्थ और काव्य दोनों हैं। मुझे उसके जिन थोड़ेसे शब्दोंका ज्ञान अनायास ही हो गया है उन्हींपर से मुझे उनकी भाषाके सम्बन्ध में यह मत उचित लगा है। इस पुस्तकमें शहरों आदिके जो नाम दिये गये हैं वे यूरोपीयोंके रखे हुए हैं। उन सबके मधुर और काव्यमय हब्शी नाम भी हैं। किन्तु मुझे वे याद नहीं हैं, इसलिए मैं उनको यहाँ नहीं दे सका हूँ।


ईसाई पादरियोंका मत है कि हब्शियोंका कभी कोई धर्म नहीं रहा। किन्तु यदि धर्मका व्यापक अर्थ लें तो कहा जा सकता है कि वे एक अदृश्य अलौकिक शक्ति- को अवश्य मानते और पूजते हैं। वे इस शक्तिसे डरते भी हैं। उनको ऐसा आभास भी होता है कि शरीर नष्ट होनेपर मनुष्यका सर्वथा अन्त नहीं हो जाता। यदि हम नैतिकताको धर्मका आधार मानें तो नैतिकतामें विश्वास रखनेके कारण उन्हें धर्मवान् भी माना जा सकता है। उन्हें सत्यासत्यकी पहचान है। साधारण अवस्थामें सत्यका पालन जितना वे करते हैं, कह नहीं सकते उतना गोरे लोग अथवा हम लोग भी करते हैं या नहीं। उनके यहाँ मन्दिर आदि नहीं होते। अन्य जातियोंके समान उनमें भी कई तरहके अन्धविश्वास दिखाई देते हैं। पाठकको यह जानकर आश्चर्य होगा कि शरीरकी मजबूतीमें जिस जातिका मुकाबला संसारकी कोई भी जाति नहीं कर सकती वह जाति इतनी भोली है कि एक गोरे बालकसे भी डर जाती है। यदि इन लोगोंके सामने कोई रिवाल्वर सीधा करे तो वे या तो भाग खड़े होंगे या भयसे