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दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास

ऐसे स्तब्ध रह जायेंगे कि उनमें भागनेकी शक्ति ही न रह जायेगी। अवश्य ही इसका एक कारण है। उनके मनमें यह बात बैठ गई है कि मुट्ठीभर गोरोंने इतनी बड़ी और जंगली जातिको वशमें कर लिया है तो अवश्य ही उनके पास कोई जादूगरी होनी चाहिए। वे भालों और तीर-कमानोंका उपयोग करना तो भली-भाँति जानते थे; किन्तु अब वे उनसे छिन गये हैं। उन्होंने बन्दूक कभी देखी सुनी नहीं थी । उनकी समझमें यह नहीं आता कि विना दियासलाई सिर्फ उँगली हिलाते ही एक छोटी-सी नलीमें से अचानक आवाज कैसे निकल पड़ती है, चमक कैसे दिखाई देती है और कैसे गोली निकलकर क्षणभरमें मनुष्यको घायल करके उसके प्राण ले लेती है। इसलिए ये लोग ऐसी वस्तुका प्रयोग करनेवालोंके भयसे सदा त्रस्त रहते हैं। उन्होंने और उनके बाप-दादोंने स्वयं ऐसी गोलियोंसे अनेक असहाय निर्दोष हब्शियों के प्राण जाते देखे हैं। यह कैसे और क्योंकर हुआ होगा सो उनमें से बहुत से लोग आजतक नहीं समझ पाते ।

सभ्यता' " धीरे-धीरे इस जातिपर हावी होती जा रही है। एक ओर नेक पादरी उनको अपनी मतिके अनुसार ईसाका सन्देश देते हैं, उनके लिए शालाएँ खोलते हैं और उन्हें अक्षर-ज्ञान देते हैं और उनके इस प्रयत्नके फलस्वरूप कुछ चरित्रवान् हब्शी भी तैयार हुए है; किन्तु दूसरी ओर उनमें से ज्यादातर लोग जो निरक्षर और पिछड़े होने के बावजूद अभीतक अनेक बुराइयोंसे मुक्त थे, आज अनीतिवान हो गये हैं। सभ्यताके सम्पर्क में आये हुए हब्शियोंमें शायद ही कोई ऐसा होगा जो दारू पीनेकी बुराईसे अछूता बचा हो। और उनके शक्तिशाली शरीर शराबके नशेमें बिल- कुल अदम्य हो उठते हैं और वे पागल होकर सभी अकरणीय कर्म कर डालते हैं। सभ्यताके आगमनका अर्थ है जरूरतें बढ़ना। यह तो दो और दो चारकी तरह एक निश्चित बात है। कहना चाहिए कि जरूरतें बढ़ाने और अधिक श्रम आवश्यक करनेके लिए इन सब लोगोंपर व्यक्ति कर और झोंपड़ी-कर लगाये गये हैं। यदि ये कर न लगाये जायें तो अपने खेतोंको छोड़कर इस जातिके लोग सोना खोदने अथवा हीरा निकालनेके लिए जमीनमें सैकड़ों गज गहरी खानोंमें घुसें ही नहीं। और यदि ये लोग खानों में काम न करें तो आफ्रिकाका सोना अथवा वहाँके होरे पृथ्वीके गर्भ में ही पड़े रह जायें। इसी तरह इन लोगोंपर कर लगाये बिना यूरोपीय लोगोंको नौकर मिलना भी कठिन हो जाये । परिणामस्वरूप खानोंमें काम करनेवाले हजारों हब्शियोंको अनेक रोगोंके साथ-साथ एक तरहका क्षय रोग भी हो जाता है, जिसे 'खनिकोंका क्षय (माइनर्स थाइसिस) कहते हैं। यह रोग प्राणघाती है। जो इसके पंजेमें आ जाता है वह कदाचित् ही बचता है। हजारों लोग एक खानपर रहें और उनके बाल-बच्चे उनके साथ न हों तो स्पष्ट है कि ऐसी स्थितियोंमें वे आचारवान् भी नहीं रह सकते। फलतः वे संसगंज रोगोंसे ग्रस्त हो जाते हैं। दक्षिण आफ्रिकाके विचारशील गोरे भी इस प्रश्नपर अवश्य विचार करते हैं। उनमें से कुछ लोग यह भी मानते हैं कि इस जातिपर सभ्यताका प्रभाव कुल मिलाकर अच्छा पड़ा है, ऐसा दावा शायद ही किया जा सकता है। इसके हानिकर प्रभाव तो सहज ही देखे जा सकते हैं।