पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 29.pdf/३८४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३५८
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अखिल भारत स्मारकके बारेमें आपने जो पं० जवाहरलालको लीखा है उसका तात्विक भाव में समझ लुंगा जब हम मीलेंगे तब ।

आपका स्वास्थ्य अब तक पूरा अच्छा नहिं हुआ है ऐसा जुगलकिशोरजी कहते थे। आपके खोराकमें कुछ फेरफार करनेकी आवश्यकता हो सकती है। आपकी धर्म-पत्नीको अब तक आराम नहिं हुआ है ऐसा भी वे कहते थे। ईश्वर उनको शांति दे ।

आपका,
मोहनदास गांधी

मेरे दायने हाथमें दरद होने के कारण मैं बायें हाथसे लीखता हुं ।

मूल पत्र (सी० डब्ल्यू ६११९) से ।

सौजन्य : घनश्यामदास बिड़ला

९६. पत्र : सतीशचन्द्र दासगुप्तको

१ जनवरी, १९२६


प्रिय सतीशबाबू,

यह नववर्षकी पहली सुबह है। मैं यहां कल दोपहरको पहुँचा। भरूचाने मुझे बताया कि आप खिन्न और उदास थे । इसका कारण न तो [ वह ] समझ सके और न मैं ही । मैंने जमनालालजीसे पूछा। उन्होंने मुझे बताया कि हो सकता है कि आप कताई-प्रतियोगिताकी परीक्षा-सम्बन्धी किसी बात को लेकर खिन्न हों। कुछ भी कारण क्यों न हो आपको उदास या खिन्न नहीं होना चाहिए । हर परिस्थिति और हर कठिनाईका सामना करते हुए समभावसे रहना सीखना चाहिए। आपने, मैंने और बहुतसे लोगोंने ऐसी सेवाके कामको हाथमें लिया है जिसका जोड़ शायद ही संसारमें मिले । सेवा कार्य जितना बड़ा होगा, उतने ही अधिक संयम, उतनी ही अधिक सहिष्णुता और उतना ही अधिक कष्ट सहन दरकार होगा। इसलिए किसी भी बातको लेकर अपना उत्साह मन्द नहीं होने देना चाहिए । हमें सभी प्रकारके स्वभावके लोगों के साथ निर्वाह करने योग्य बनना चाहिए। इसलिए कृपया लिखें कि आप फिर पहले जैसे उत्साहसम्पन्न व्यक्ति बन गये हैं। आपको 'चियर बॉयज़ चियर, नो मोर ऑफ आइडिल सॉरो ! ' वाला गीत तो याद होगा ही। एडविन आर्नोल्डके उस दिव्य गीतको बार-बार पढ़िये ।

मेरा मन था कि मैं आपसे बातें करूँ। फिर मैंने सोचा कि आपको साथ ले चलूँ । लेकिन बातें करने योग्य समय मेरे पास नहीं था। और फिर मैं यह भी नहीं चाहता था कि आप अपना काम छोड़कर मेरे साथ रहें। मैं यह भी चाहता था कि डा० सुरेशसे आपका सम्पर्क फिर सब जाये । उनका कार्य मुझे अच्छा लगा है।