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पत्र : नारणदास गांधीको


बातचीत करूँ। किन्तु ऐसा हो नहीं सका। अब जब भी सम्भव हो, आप यहाँ अवश्य आयें।

आपको जरा भी संकोच किये बिना लिखना चाहिए कि आपको क्या पसन्द है। मेरा यहाँपर रहना एक वर्षके लिए निश्चित हो गया है।

हेमप्रभादेवीका क्या हाल है? मेरी उनसे काफी देरतक बातें हुई थीं। किन्तु मैं समझ गया कि उन्होंने अपने मनको बात मुझसे नहीं कही। उन्हें जल्दीसे-जल्दी यहाँ आ जाना चाहिए। यदि उन्हें अलग रसोईघरकी आवश्यकता हो, तो मैं उसका प्रबन्ध कर दूंगा। एक बंगाली अध्यापक यहाँ हैं। किन्तु यदि आप उनके लड़कोंके लिए कोई अच्छा विद्वान् दे सकें तो दें। मौसमके पर्याप्त ठंडे रहते-रहते तक उन्हें यहाँ आ जाना चाहिए। यहाँ इस बार असामान्य रूपसे बहुत हलका जाड़ा पड़ रहा है, इसकी कानपुरसे कोई तुलना ही नहीं है।

आपका,

बापू


[पुनश्च : ]

आपको विज्ञापन पुस्तिकाको मैंने पूरा-पूरा पढ़ा है। बहुत अच्छी है। आपके सफरी चरखेकी बिक्री कैसी हो रही है ?

अंग्रेजी पत्र (जी० एन० १५५७) की फोटो-नकल से ।

९७. पत्र : नारणदास गांधीको

शुक्रवार [१ जनवरी, १९२६]

चि० नारणदास

तुम्हरे दोनों पत्र मिले। तुम्हारे कार्यभार छोड़ देनेकी बात मुझे मालूम नहीं थी। मैंने तुम्हें इसीलिए तार दिया था। कार्यालयके सम्बन्धमें तुम्हारा पत्र चि० जयसुखलालको सौंप दिया है जिससे उसे मालूम हो जाये कि औरोंके विचार कैसे हैं। अब तो मैंने एक वर्ष यहीं रहने का निश्चय किया है, इसलिए मैं इन मामलोंसे निपट सकूँगा। तुमने अपने बारेमें जो निर्णय किया है वह ठीक नहीं है। घरेलू असुविधाएँ दूर हो सकेंगी। लेकिन अब तो तुम्हारे यहाँ आनेके सिवा कोई चारा नहीं, क्योंकि

१. मगनलालके उपवासके उल्लेखसे ।

२. काठियावाड़ राजनीतिक परिषद्के मन्त्रीका ।

३. जयसुखलाल गांधी, गांधीजीके भतीजे ।