९९. सन्देश : स्नातक संघको
पौष बदी ३ [२ जनवरी, १९२६]
मैं आपके पत्रका जवाब अब जाकर दे पा रहा हूँ। मैं संघकी सफलताकी 'कामना करता हूँ। मेरी सलाह यही है कि संघने जो नियम बनाये हैं उनका पूर्ण रूपसे पालन किया जाये। संघ स्थापित तो बहुत सारे हुए लेकिन उनमें से बहुत कम सफल हो पाये हैं। मैं कामना करता हूँ कि आपके संघकी गिनती इन सफल संघोंमें हो ।
मोहनदास गांधोके वन्देमातरम्
१००. मथुरादास त्रिकमजीको लिखे पत्रका अंश
२ जनवरी, १९२६
तुमने महादेवको जो दो पत्र लिखे वे आज मिले है। मिले तुम्हारी निराश भावना दिखाई देती है। लेकिन निराशाका कारण ही कहाँ है ? रोग तो देर या सबेर चला ही जायेगा। तुम वहाँ चले गये, यह तो ठीक हुआ। अब आसपासकी चिन्ताएँ छोड़ो; स्वयं अपनी चिन्ता भी न करो । यदि तुम इतना भी न कर सको तो तुम्हारा सारा ज्ञान व्यर्थ ही होगा ।
[ गुजरातीसे ]
१०१. कांग्रेस
कानपुरके कांग्रेस अधिवेशनके सम्बन्ध में अनेक भविष्यवक्ताओंकी यह भविष्य- वाणी थी कि यदि सरोजिनी देवी अधिवेशनकी अध्यक्षा चुनी गईं तो उन्हें भारी कठि- नाई होगी; अधिवेशन में प्रेक्षक आयेंगे ही नहीं, प्रतिनिधि भी कम ही आयेंगे, आदि, आदि। लेकिन इस बारका कांग्रेस अधिवेशन पहले अधिवेशनोंसे किसी भी तरह कम नहीं रहा। सच पूछो तो वह उनसे बढ़कर ही रहा।
प्रबन्ध में वह अन्य अधिवेशनोंसे बढ़कर रहा, ऐसी मेरी मान्यता है। प्रतिनिधियों- की खास शिकायत ज्यादातर खानेके सम्बन्धमें होती है। लेकिन मैंने खानेके सम्बन्धमें तो प्रशंसाके सिवा और कुछ सुना ही नहीं। इस बार जैसा खाना दिया गया वैसा पहले कदाचित् ही कभी दिया गया होगा। प्रतिनिधियोंको इच्छानुसार दूध, दही, पापड़,