पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 29.pdf/३८८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३६२
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

शाक आदि सभी दिये जाते थे। खानेकी चीजें भी अच्छीसे-अच्छी थीं और परोस भी बहुत फुर्तीसे दी जाती थीं। वस्तुतः देखा जाये तो स्वयंसेवक इतने ज्यादा थे कि किसीको कुछ कहनेकी जरूरत ही न पड़ती थी। स्वच्छता भी मनोनुकूल थी । मैंने स्वयं सब-कुछ देखाभाला, और मुझे टीका करने योग्य कोई बात नहीं दिखाई दी। इस सुव्यवस्थाके यशके भागी लाला फूलचन्द हैं।

खाने-पीने की तरह ही रहनेकी व्यवस्था भी उत्तम थी। सबके लिये छोलदारियाँ थीं। उनमें सर्दी लगनेका बहुत कम भय था । पाखानेकी व्यवस्था भी उत्तम प्रकार- की थी । खाइयाँ बहुत अच्छी खोदी गई थीं। पाखानोंके सामने पर्दे थे। लोगोंके पाखाना जानेके बाद मिट्टी डाल देनेके लिए स्वयंसेवक तुरन्त तैयार खड़े रहते थे । भंगी मौजूद थे; तथापि स्वयंसेवकोंको भंगीका काम करने में कोई संकोच न था। इस विभागका नाम ही 'आरोग्य और भंगी विभाग' रखा गया था। प्रत्येक स्वयंसेवकको जो चिह्न दिया गया था उसपर टोकरी और झाड़का चित्र बना हुआ था। मैं २९ तारीखके पहले इन सब चीजोंकी जाँचके लिए नहीं निकल पाया था; अर्थात् उन्हें तदनुसार काम करते हुए पाँच दिन बीत चुके थे। फिर भी मुझे पाखानोंके पास तनिक भी गन्दगी नहीं दिखी। कहीं दुर्गन्ध नहीं थी और मुझे पानी भी कहीं बहता नहीं दिखा । २९ तारीखको अर्थात् कांग्रेस अधिवेशनके समाप्त होनेके बादवाले दिन भी गन्दगी न होना सुव्यवस्थाका परिचायक है।

लगभग आठ सौ स्वयंसेवक और अस्सी स्वयंसेविकाएँ थीं। स्वयंसेविकाओंके लिए भगवे रंगकी खादीकी साड़ियाँ थीं; वे उन्हें पहने हुए बहुत अच्छी लग रही थीं।

कांग्रेस नगरका छपा नक्शा भी प्राप्य था । कांग्रेस मण्डपके आसपास अन्य सम्मेलनोंकी भी व्यवस्था की गई थी। लगभग ३० अन्य सम्मेलन किये गये थे।

लोगोंमें प्रबन्धके अनुकूल उत्साह भी था । तिलक नगरमें लोगोंकी भीड़पर भीड़ उमड़ी पड़ती थी। कहीं निकलनेके लिए भी रास्ता नहीं मिलता था। सबके चेहरों- पर उत्साह और आनन्द छाया हुआ था। मण्डपके बाहर भीतर एक-सी भीड़ थी । पहले दिन ही मण्डप खचाखच भर गया था। इस कांग्रेस अधिवेशनमें अंग्रेजीभाषी स्त्री-पुरुषोंकी संख्या खासी बड़ी थी और उनमें सबसे ज्यादा अमेरिकी थे ।

सरोजिनी देवीने अपना कार्य समझदारी और मधुरतासे किया और इस तरह सबका मन हर लिया। उनके उद्योगकी और उनकी सावधानीकी सीमा न थी । उन्होंने निर्धारित कार्यक्रमका पूरा पालन किया । जहाँ छूट देनी चाहिए वहाँ छूट दी और जहाँ दृढ़तासे काम लेना चाहिए वहाँ दृढ़तासे काम लिया ।

सभानेत्रीका भाषण काव्यमय था। यह भाषण संक्षिप्ततम कहा जा सकता है। अंग्रेजी भाषाके सौन्दर्यका तो कहना ही क्या है ? उनके इस संक्षिप्त भाषणमें भी कोई बात छूटो नहीं थी । भाषणमें नये सुझावोंकी आशा नहीं की जा सकती थी, क्योंकि नई व्यूह रचना सरोजिनी देवोका काम न था । वह तो पंण्डित मोतीलालका काम था ।

और उन्होंने उस व्यूहकी रचना की। मुझे उसके विषयमें कुछ नहीं कहना । मैं कौंसिल प्रवेशकी बात नहीं समझता। मुझे उससे जनताका लाभ होते नहीं