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कांग्रेस

दिखता। लेकिन यह तो हुई पुरानी बात। कौंसिलोंमें जाना इष्ट है, अनेक अंग्रेजी पढ़े-लिखे लोग ऐसा मानते हैं। अतः मेरे जैसे लोगोंका काम इतना ही तय करना रह जाता है कि उनमें से किसी एक पक्षका समर्थन किया जाये। मैंने बेलगाँवमें यही किया और बाद में पटना में और अन्तमें कानपुरमें भी यही किया। स्वराज्यदलमें दो पक्ष हो गये हैं, यह बात मुझे बहुत दुःख देती है, लेकिन जहाँ सिद्धान्त भेद हो वहाँ ऐसे पक्षोंका बनना अनिवार्य है। ऐसे प्रयोग करते-करते हम किसी दिन लक्ष्यपर पहुँच जायेंगे | मेरी समझमें तो हम १९२० में जिस स्थितिम पहुँच गये थे, अन्तमें अब भी वैसी ही स्थितिम पहुँच जायेंगे। यह हो अथवा न हो; लेकिन जहाँ मतभेद सच्चे हों वहाँ उन्हें व्यक्त करनेमें देशका अहित कदापि नहीं हो सकता। जो प्रस्ताव पारित हुआ है वह महत्त्वपूर्ण है। इसमें कौंसिल त्यागके बीज मौजूद हैं। अन्तिम परिणाम तो भगवान ही जाने ।

लेकिन प्रथम और तात्कालिक महत्त्वका प्रश्न तो दक्षिण आफ्रिकाके भारतीयोंका है। उस प्रस्तावमें जो उपाय सुझाये हैं। यदि उनमें से एक भी अपनाया जाये तो वहाँ रहनेवाले हमारे भारतीय भाइयोंकी समस्याका समाधान अवश्य हो जायेगा।

यह प्रस्ताव कि जहाँतक हो सके कांग्रेसमें हिन्दी और उर्दूका ही उपयोग किया जाना चाहिए, महत्त्वपूर्ण है। यदि कांग्रेसके सभी सदस्य उसपर अमल करें तो गरीबोंको भी कांग्रेस कार्यमें रस आने लगे ।

प्रदर्शनीकी व्यवस्था भी बहुत अच्छी थी। कानपुरकी प्रदर्शनी अन्य अधिवेशनों- की प्रदर्शनियोंकी अपेक्षा अधिक अच्छी रही, ऐसा मुझे लगा। इसमें अन्य भागों की रचना खादीको केन्द्रबिन्दु मानकर की गई थी। योजनासे कोई भी खादीकी चार वर्षकी उन्नतिको अच्छी तरह समझ ले सकता था । कहाँ १९२१ की खादी और कहाँ १९२५ को खादी ? इस प्रदर्शनीको देखनेके बाद कोई नहीं कह सकता कि खादीकी अच्छी प्रगति नहीं हुई है। कोई भी प्रेक्षक कह सकता है कि रचनात्मक कार्यमें खादी आसानीसे प्रथम स्थान प्राप्त कर सकती है ।

प्रदर्शनीके दूसरे विभाग भी आकर्षक थे। हजारों स्त्री-पुरुषोंने प्रदर्शनीका लाभ लिया। दर्शकोंकी संख्या कई दिनोंतक १२,००० से भी अधिक रही। कुल मिलाकार कांग्रेस और उससे सम्बन्धित अंगोंकी व्यवस्थाके बारेमें स्वागत- कारिणी समिति और डाक्टर मुरारीलाल बधाईके पात्र हैं। कांग्रेस अधिवेशनोंके प्रबन्धमें दिन-प्रतिदिन सुधार होता जाता है; इससे जनताकी स्वराज्यकी क्षमतामें कितनी वृद्धि हुई इसका माप भी हो जाता है।

कांग्रेसको लोकप्रियताका माप उसके सदस्योंकी संख्यासे नहीं होता वरन् उसके वार्षिक अधिवेशनके समय लोगों के उत्साहसे होता है। यह उत्साह इस वर्षके अधि- वेशनमें किसी कदर कम न था। यह बात तो सरोजिनी देवीके सम्मानार्थ जो जलूस निकाला गया था उसे देखनेवाले लोग भी देख सकते थे। रास्तेभर जनताकी भीड़ और जलूसके मार्गौकी स्वेच्छासे की गई सजावट इस उत्साहकी परिचायक थीं। लोगोंमें उत्साह आखिरी दिनतक कायम रहा।

१. देखिए " भाषण: दक्षिण आफ्रिकी भारतीयोंसे सम्बन्धित प्रस्तावपर", २५-१२-१९२५ ।