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१०४. पत्र : नारणदास गांधीको

सोमवार [४ जनवरी, १९२६][१]

चि० नारणदास,

चि० मगनलालका उपवास ठीक तरह चल रहा है। दुर्बलताके अलावा और कोई खराबी नहीं है। रामदास अमरेलीके [खादी-कार्यके] सम्बन्धमे बात करने आ गया है। तुम आ जाओ तो इस विषय में मेरा मार्गदर्शन कर सकते हो।

बापूके आशीर्वाद

चि० नारणदास खुशालचन्द गांधी
मिडिल स्कूलके सामने
नवापुरा
राजकोट

गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ७७०६) से।

सौजन्य : नारणदास गांधी

१०५. मथुरादास त्रिकमजीको लिखे पत्रका अंश[२]

४ जनवरी, १९२६

तुम चाहो तो बाको ही भेज दूं। वह सार-संभाल अच्छी तरह करेगी और तुम्हारे साथ पर्याप्त रूपसे घुलमिल भी जायेगी।...

इसमें सन्देह नहीं कि तुम्हें राम तो पूरा ही करना चाहिए। तुम्हें दूसरी दवा नहीं चाहिए। फिलहाल तो जिनसे मनमें बहुत खुशी हो ऐसी बातें न करना ही अच्छा है। तुम्हारे लिए तो अभी निर्मल और शान्त आनन्दकी आवश्यकता है।...

तुम बम्बई नगर निगम के सदस्य बने रहो; यह उचित ही है। यदि तुम अपनी अनुपस्थितिमें भी चुन लिये जाओ, तो यह एक बहुत शुभ चिह्न होगा।

[गुजरातीसे]

बापुनी प्रसादी

  1. १. ढाकको मुहरसे।
  2. २. साधन-सूत्रमें अनुच्छेद १ पृष्ठ ८४, अनुच्छेद २ पृष्ठ ८५ और अनुच्छेद ३ पृष्ठ ८६ पर हैं; छेकिन तारीख तीनोंकी एक ही है; सम्भवतः ये एक ही पत्रके अंश हैं।