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आसक्ति या आत्मत्याग

रकमके दस गुने अर्थात् एक करोड़को कोई बड़ी रकम नहीं कहा जा सकता। यदि एक अस्पतालके लिए दस लाखकी रकम ज्यादा नहीं है तो खादीके कामके लिए, जिससे कि करोड़ों घरोंसे भुखमरीको भगाया जा सकेगा, एक करोड़की राशि कोई बड़ी नहीं है। यह विचार साकार हो चाहे कोरा स्वप्न ही बना रहे, लेकिन दस लाख फौरन इकट्ठे होने में कोई भी कठिनाई नहीं होनी चाहिए। एक मित्रने एक लाख देनेका वचन दिया है जिसमें से १२,००० रुपये उन्होंने दे भी दिये हैं। श्रीयुत मणिलाल कोठारीने एक लाख रुपये दिलानेका वचन दिया है, जिसमें से २५,००० मिल भी चुका है। श्रीयुत एस० श्रीनिवास आयंगारसे १०,००० रुपये मिलनेकी शुभ सूचना आई है। खादी प्रेमी कार्यकर्त्ताओंसे मेरा निवेदन है कि वे अपने मित्रोंसे धन एकत्र करके स्मारक कोषके कोषाध्यक्ष श्री जमनालाल बजाजके पास भेजें।

लेकिन कोष एकत्र हो या न हो, निर्णय हो चुका है। 'मेरे मन कछु और है, कत्र्ताक कछु और' । बिहार छोड़ते समय मैंने अपने बिहारी मित्रोंको इस बातकी पूरी आशा दिलाई थी कि यदि कोई व्यवधान उपस्थित न हुआ तो मैं बिहारका अपना बाकी दौरा इसी वर्षके आरम्भमें ही और यदि सम्भव हुआ तो इसी मासमें पूरा कर दूंगा । जब कच्छके दौरेकी बात तय हुई थी तब श्री दास्तानेने मुझसे यह वचन ले लिया था कि मैं बिहारका शेष दौरा पूरा करने के बाद फौरन महाराष्ट्रके कुछ हिस्सोंका दौरा करूंगा। बादमें असम भी जाना था और उसके बाद समूचे दक्षिणी प्रायद्वीपकी बारी थी। लेकिन सात दिनके मेरे अप्रत्याशित उपवासने मेरे सब मंसूबोंपर पानी फेर दिया। परमात्माने एक बार फिर हस्तक्षेप किया और बिना किसी चेतावनीके सारी योजना ज्योंकी-त्यों पड़ी रह गई। बिहार, महाराष्ट्र, असम और अन्य प्रान्तोंके मित्रगण मेरी इस कठिनाईको समझ जायेंगे |

मेरे लिए तो यह वर्ष आसक्ति और आत्मत्याग दोनोंका कहा जा सकता है। आसक्ति इस अर्थमे कि इससे आश्रमके लड़के-लड़कियों तथा वहाँ रहनेवाले सहयोगियोंके बीच रहने को मेरी चिरवांछित लालसा पूरी होनेकी आशा है । आत्मत्याग इस अर्थमें कि विभिन्न प्रान्तोंके अनेक मित्रोंसे मिलनेमें और जनताके प्रेमका भाजन बनने में मुझे आनन्द मिलता था। मेरे और जनताके बीच एक ऐसा सम्बन्ध है जिसका वर्णन नहीं किया जा सकता, लेकिन जिसे वह और मैं दोनों ही महसूस करते हैं। मुझे जनताके बीच रहनेमें अपने जनार्दनके दर्शन होते हैं। जनता-जनार्दनके बीच रहने से ही मुझे अपना समस्त सन्तोष, आशा और शक्ति मिलती है। यदि पूरे ३० वर्ष पहले, मैंने यह बन्धन दक्षिण आफ्रिकामें महसूस न किया होता तो मेरे लिए जिन्दगी भाररूप हो जाती । लेकिन मैं यह जानता हूँ कि चाहे मैं आश्रममें रहूँ, चाहे जनताके बीच में काम उसके लिए ही करता हूँ, उसके ही बारेमें सोचता हूँ और उसके ही लिए प्रार्थना करता हूँ। मैं जनताके लिए ही जीना चाहता हूँ और तभी मेरा जीना सार्थक है।


[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, ७-१-१९२६

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