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१११. वार्षिक प्रदर्शन

कांग्रेस सप्ताह के दौरान कानपुरमें हुए प्रदर्शनको देखने के बाद केवल कल्पनाशून्य व्यक्ति ही यह कह सकते हैं कि कांग्रेसका प्रभाव घट रहा है। कांग्रेसको तुच्छ ठहरानेके प्रयत्न तो कांग्रेसके जन्मके साथ ही शुरू हो गये थे। फिर भी यह चाली वर्षोंतक जीवित रही और आगे भी बहुत वर्ष जीवित रहेगी।

प्रदर्शनका प्रारम्भ अध्यक्षके उस शानदार स्वागतसे हुआ जो उनके कानपुर पहुँचनेपर किया गया। विरोधकी कमजोर आवाज उस प्रथम भारतीय महिलाके स्वागत- के लिए इकट्ठा हुए हजारों लोगोंके नारोंके बीच दब गई थी, जो इस महान् राष्ट्रीय कांग्रेसकी अध्यक्षता करने आई थी । प्रसन्न मुद्रामें एकत्र जन-समूहसे सड़कें खचाखच भरी थीं। हर छत और हर छज्जेपर कानपुरकी महिलाओंका जमघट था और उनकी आँखें श्रीमती सरोजिनी देवीको देखने के लिए आतुर थी। सजावटको आकर्षक और प्रभावोत्पादक बनानेमें व्यापारियोंमें आपसमें होड़-सी लगी हुई थी । कांग्रेस मैदानमें जन-समुद्र हिलोरें ले रहा था। पहले ही दिन पंडालमें तिल रखने तककी जगह न थी। इससे पहले कांग्रेसके किसी भी अधिवेशनमें इतने अधिक यूरोपीय दर्शक नहीं आये थे । प्रतिनिधियोंने अध्यक्षको बड़े ध्यानसे सुना और उनकी आज्ञाओंका पूर्ण रूपसे पालन किया। अध्यक्षने अपनी सूझ-बूझ, अध्यवसाय, नियमितता, मृदुता और दृढ़ताके अपूर्व सामंजस्यसे अपने मित्रोंकी आशाके अनुरूप सफलता प्राप्त की और अधिवेशनकी असफलताका स्वप्न देखनेवाले आलोचकोंको हताश कर दिया। उनका भाषण, जो अबतकके कांग्रेस अध्यक्षों द्वारा लिखे गये सभी भाषणोंमें सबसे छोटा था, एक गद्य-काव्य ही था। उन्होंने १२ अठवरकी पृष्ठोंमें ही संघर्ष तथा जनताकी, जिसका वह प्रतिनिधित्व कर रही थीं, आकांक्षाओंको लिपिबद्ध कर दिया था । यह सच है कि उस भाषणमें कोई नई बात नहीं थी। वे कोई नई बात कहना भी नहीं हती थीं। उन्होंने किसी नीतिकी रूपरेखा प्रस्तुत नहीं की। काम सोच-विचारके बाद स्वराज्य पार्टीके नेता पण्डित मोतीलाल नेहरूके लिए छोड़ दिया गया था । सरोजिनी देवीकी विशेषता तो उनकी निरभिमानता और निष्पक्षता तथा इस बातमें निहित थी कि नेतृत्व करते हुए भी वह किसी दूसरेका नेतृत्व माननेके लिए तैयार थीं। उनकी सफलताका रहस्य उनके नारी-सुलभ व्यवहारमें था, जिसका लोगोंने पग-पगपर अनुभव किया ।

वहाँ पास किये गये महत्त्वपूर्ण प्रस्तावोंके सम्बन्धमें यहाँ विशेष कुछ कहनेकी आवश्यकता नहीं है। उनमें वे सभी महत्त्वपूर्ण मुद्दे आ जाते हैं जिन्हें लेकर देशमें पिछले एक सालसे हलचल हो रही है। तात्कालिक महत्त्वकी दृष्टिसे दक्षिण आफ्रिकाका प्रस्ताव पहला था और वही सर्वप्रथम लिया भी गया था। उसके विरोधमें चाहे जो- कुछ भी क्यों न कहा जाये, मेरे विचारमें तो प्रस्तावित विधेयकसे १९१४का 'स्मट्स गांधी समझौता' भंग होता है। सम्राट् द्वारा विधेयकोंके अस्वीकृत किये जानेकी