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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कांग्रेसने पुष्टि की है, क्रियान्वित करना चाहते हैं तो दूसरोंको उनके मार्ग में बाधक नहीं होना चाहिए।

गहराईमें न जानेवालोंको स्वराज्यवादी दलमें फूट दुर्भाग्यपूर्ण लग सकती है। एक प्रकारसे यह दुर्भाग्यपूर्ण तो है ही। यदि सम्भव हो तो हम सभीको पूर्णतया एकमत होना चाहिए। लेकिन यदि हम बहादुरी और ईमानदारीके साथ अपने बुनि यादी मतभेदोंको स्वीकार करते हुए उन्हें दूर करनेका प्रयत्न करें तो निःसन्देह यह दुर्भाग्यपूर्ण नहीं बल्कि प्रगतिका विश्वसनीय परिचायक है। हम यान्त्रिक करारों द्वारा जिनमें हमारा विश्वास नहीं है स्वराज्य नहीं पा सकेंगे। भारत-जैसे विशाल देशमें अनेक विचारधाराओंके लिए काफी गुंजाइश है। और जबतक विभिन्न विचारधाराओंके समर्थक आपसमें एक-दूसरेके प्रति आदरभाव रखते हैं और अपने-अपने दृष्टिकोणोंको ईमानदारीके साथ आगे बढ़ाते हैं, तबतक लोगोंको अपनी विचाराभिव्यक्तियोंसे लाभ ही हो सकता है। किसीके विचारोंका जोर-जबर्दस्तीसे दमन करना अवनति और हिंसाका द्योतक है। इसलिए मैं जनताको सचेत करना चाहूँगा कि वह स्वराज्य- वादियोंके दलमें इस नाममात्रकी फूटके सम्बन्धमें निराश न हो ।

इसके बाद बंगाल अध्यादेशके सिलसिलेमें कैद किये गये बन्दियों, गुरुद्वारा-बन्दियों और भारतीय प्रवासियोंके सम्बन्धमें बर्मा सरकारकी कार्रवाई सम्बन्धी प्रस्ताव आते हैं। ये सभी प्रस्ताव हमारी वर्तमान दुर्बलताके परिचायक हैं और सरकारके विरुद्ध लगाये गये अभियोगोंमें एक और कड़ी जोड़ते हैं।

हिन्दुस्तानीके प्रयोगके बारेमें जो प्रस्ताव है, वह लोकमतकी भारी प्रगतिको प्रमाणित करता है। हमारी कार्यवाहीका अभीतक अधिकांशतः अंग्रेजीमें होना निःसन्देह अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटीके अधिकांश सदस्यों अथवा प्रतिनिधियोंके प्रति एक ज्यादती है। इसके बारेमें किसी-न-किसी दिन हमें अन्तिम निर्णयपर पहुँचना ही है। हम यह निर्णय जब लेंगे, तभी कुछ-न-कुछ असुविधा तो होगी ही और कुछ लोग कुछ समयके लिए क्षुब्ध भी रहेंगे। लेकिन हम जितनी जल्दी अपनी कार्यवाही हिन्दुस्तानी में शुरू करेंगे, राष्ट्रकी प्रगतिके लिए वह उतना ही अच्छा होगा।

[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, ७-१-१९२६