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११९. पत्र : हरिभाऊ उपाध्यायको

आश्रम
पौष कृष्ण १० [९ जनवरी, १९२६ ]


भाई हरिभाऊ,

चि० मार्तण्डके साआश्रमथ भेजा हुआ खत मिला है। मार्तण्डके लिए जो कुछ हो सकता है किया जायगा । तुम्हारे स्वास्थ्यके लिए योग्य आहार लेनेमें हि अच्छा है । भले कामपर चढ़ने में थोड़ी देर हो ।

मूल पत्र (सी० डब्ल्यू० ६०५७ ) से ।
सौजन्य : हरिभाऊ उपाध्याय

बापूके आशीर्वाद

१२०. मुझे बचाओ

मैंने जो क्षेत्र - संन्यास लिया है, उसमें मोह अथवा भयवश अहमदाबादको शामिल नहीं किया था; तथापि मेरी इच्छा तो उसमें अहमदाबादको भी शामिल रखनेकी है । यदि मैं अहमदाबादको अपवाद मानूं तो इस बातकी बड़ी आशंका है कि मैं आश्रम में रहकर जो सेवाकार्य वर्ष भरमें कर डालना चाहता हूँ उसमें विघ्न पड़े बिना नहीं रहेगा। पिछले हफ्ते ही मैंने यह संकट आया हुआ देख लिया । रामकृष्ण मिशनका वार्षिक उत्सव आया और मुझसे उसमें अध्यक्ष पद ग्रहण करनेका अनुरोध किया गया। चूँकि मैं स्थायी रूपसे आश्रम में रहता हूँ; इसलिए में उसे इनकार करूँ तो कैसे ? और यदि उसमें जाना स्वीकार करूँ तो अहमदाबादमें जो अन्य शुभ कार्य होते हैं, उनमें क्यों न जाऊँ ? और अगर उन सबमें जाने लगूं तो मैंने शान्ति प्राप्तिके जिस उद्देश्य से यह क्षेत्र - संन्यास लिया है वह उद्देश्य निष्फल हो जाये । यदि डा० हरिप्रसाद मुझे अहमदाबादकी हर गलीको एक-एक दिन देने तथा वहाँका कचरा साफ करनेके लिए कहें तो मैं उस कार्यको अपने योग्य ही मानूंगा; किन्तु उसे सिरपर ले लेनेसे सालका मेरा एक-एक दिन व्यस्त हो जायेगा और मैं जहाँ हूँ वहीं रह जाऊँगा ।

जो भाई मुझे निमन्त्रण देने आये थे, वे मेरी बात समझ गये और उन्होंने मुझे बख्श दिया। अहमदाबादके प्रत्येक कार्यकर्त्तासे में ऐसी ही दयाकी आशा रखता हूँ। जैसे हिन्दुस्तान मुझे २० दिसम्बरतक भूला रहेगा, उसी तरह् अमदाबादको

१. प्रेषी द्वारा दी गई तिथि देखिए “पत्र : हरिभाऊ उपाध्यायको", ३-१-१९२६ ।