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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

और एकेश्वरको माननेवाला कभी दूसरेकी आराधना न करेगा। जो ईश्वरका बन्दा बनता है वह दूसरेकी गुलामी कभी भी न करेगा। इसलिए जैसे मनुष्योंसे दुःख मिलने- पर ईश्वरवादीके लिए रामनाम ही रामबाण औषधि है उसी प्रकार भूत-प्रेतोंके सम्ब- न्धमें भी चाहिए। पत्र लिखनेवाले और उसके सगे-सम्बन्धी श्रद्धापूर्वक रामनामका जप करेंगे तो भूत प्रेत भाग जायेंगे । संसारमें करोड़ों मनुष्य भूत-प्रेतोंको नहीं मानते और वे उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकते । लेखक अपना अनुभव बताते हुए यह लिखते हैं कि भूत-प्रेत उनके पिताजीको बहुत पीड़ा देते हैं, लेकिन जब वे अपने पिताजीसे दूर रहते हैं तब स्वयं उन्हें कोई पीड़ा नहीं देते। उपाय इसीसे प्रकट हो जाता है । उनके पिता भूत-प्रेतोंसे डरते हैं; इसलिए वे उन्हें डराते हैं। राजा दण्डसे डरने- वालेको हो दण्ड दे सकता है। जो दण्डसे डरता ही नहीं उसके लिए राजदण्ड किस कामका ? जो भूतसे डरता ही नहीं, भूत उसका क्या कर सकता है ?

[गुजरातीसे ]
नवजीवन, १०-१-१९२६

१२३. हाथकत कहानी

कहानी भी कहीं हाथसे काती जाती है। लेकिन राजाजीने यह भी कर दिखाया है। उन्होंने 'यंग इंडिया' के लिए सूतकी सुन्दर कहानी लिखी है और उसे हाथकती कहानी कहा है। इसका मतलब यह है कि उन्होंने यह कहानी कहींसे चुराई नहीं है; वह यान्त्रिक नहीं है, बल्कि अपने अनुभवके आधारपर तैयार की गई है। इस लिए यह कहानी हाथकते सूतके समान पवित्र तथा सब रसोंसे युक्त होनेपर भी इस जीवनकी करुणरस प्रधान कहानी है। इसीलिए वह हाथकती कहानी कही जा सकती है, हाथ-कती अर्थात् अपने आप रचित । अनुवाद नीचे दिया गया है:

[गुजरातीसे ]
नवजीवन, १०-१-१९२६



१. चक्रवर्ती राजगोपालाचारी ।

२. इसका अनुवाद यहाँ नहीं दिया गया है। यह ७-१-१९२६ के यंग इंडिया में प्रकाशित हुई थी और इसमें तमिलनाडके कालिम्यूर गांवके गरीब सूत कातनेवालों और बुननेवालोंके साहसपूर्ण उद्योगका वर्णन किया गया था। इसमें यह भी बताया गया था कि उनकी तैयार की गई खादीसे बम्बईके नुकताचीनी करनेवाले खादी खरीदनेवालोंका परितोष नहीं हो सका।