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१२४. पत्रः रामेश्वरदास पोद्दारको

साबरमती,
पौष कृष्ण १२ [११ जनवरी १९२६]


भाई रामेश्वरजी,

आपके दोनों पत्र मुझे मीले हैं। आप निष्काम बुद्धिसे रामनाम जपें । भूतकालमें हुए पापोंका आप स्मरण न करें परंतु ईश्वरका अनुग्रह मान के अब आपको वह पाप कर्मोंसे मुक्त रखता है और उससे मांगे कि भविश्यमें भी दूर रखे ।

आप किसी पारमार्थिक कर्ममें लगे रहें ।

चमड़ेका कार्य धार्मिक है उसमें मुझे संदेह नहि है। आपके यहां वह काम नहि हो सकता है। आप देना चाहें तो गोरक्षाके कार्यमें द्रव्यकी सहाय दें।

अंतमें आप रामायणादि पुस्तकोंका मनन करें।

आपका,
मोहनदास गांधी


मूल पत्र (जी० एन० १६२) की फोटो-नकलसे ।

१२५. पत्र : मणिबहन पटेलको

सोमवार, ११ जनवरी, १९२६


चि० मणि,

मुझे तुम्हारे पत्रोंसे सभी समाचार मिल जाते हैं। तुमने भाई देवधरके नाम जो पत्र लिखा है वह अच्छा है। वह उन्हें भी अच्छा लगेगा ।

वहाँ सब नया है, इसलिए तनिक घबराहट होती है। परन्तु मन इस तरह कच्चा नहीं करना चाहिए। कमला पढ़नेमें जितनी बढ़ सके उसे उतना बढ़ाओ । वह धीरे-धीरे रास्तेपर आयेगी। बातोंमें उसका मन बहलाओ। घूमने निकले तो घूमने ले जाओ। उसे प्रेमसे जीतो ।

तुम्हें मराठी लिखनेकी और पढ़ाने की आदत नहीं है। दोनों अभ्याससे आ जायेंगे । वहाँ मराठी है, वह तो हम जानते ही थे । हिन्दी घरपर पढ़कर सीख लो । किसीकी मददकी जरूरत हो तो मदद ले लो।

तुम्हें दूसरोंको खादीकी बात नम्रतासे समझानी चाहिए और वे जितना मान लें उतनेको ही गनीमत समझना चाहिए ।

१. डाककी मुहरसे।