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१२७. पत्र : नारणदास गांधीको

सोमवार [११ जनवरी, १९२६]


चि० नारणदास,

मैं तुम्हारी बड़ी राह देख रहा हूँ। १९ को अवश्य ही आ जाओगे, मैं ऐसा मानता हूँ। परिवार सहित आना। अभी तो तुम बा अथवा काशी अथवा मगनलालके साथ रहोगे। तुम्हारे आनेके बाद जैसा तुम्हें अनुकूलं जान पड़ेगा वैसा प्रबन्ध करूँगा । मैं तुम्हारे लिए नया मकान बनाने के लिए भी तैयार हूँ। तुम्हें किसी तरहकी असुविधा रखनेका विचार नहीं है। मुझे एक वर्ष यहीं रहना है। मैं चाहता हूँ कि तुम इस दौरान यहाँ रहो।

मैंने जमनादासको पत्र तो लिखा है; लेकिन ऐसा लगता है कि उसे चित्तभ्रम हो गया है और वह अपनी विचारशक्ति खो बैठा है। उसे भी यहाँ बुलाया तो है। तुम्हारी सलाह मान ले तो उसे भी साथ ले आना ।

बापूके आशीर्वाद

गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ७७०७) से।

सौजन्य : नारणदास गांधी

१२८. पत्र: जमनालाल बजाजको

सोमवार [११ जनवरी, १९२६]


चि० जमनालाल,

विनोबाने मुझसे कहा था कि तुम्हें ऐसा लगता है कि मैं यहाँ किये जा रहे उपवासोंसे चिन्ता में पड़ जाऊँगा । लेकिन मुझे तो उनसे कोई भी चिन्ता नहीं हुई; यही नहीं, बल्कि मुझे आनन्द हुआ। भाई भन्सालीके उपवासका कारण उनकी इच्छा ही थी। वे इन दिनों भारी तपश्चर्या कर रहे हैं। भाई किशोरलालने व्यक्तिगत रूपसे और सिर्फ अपना विकार दूर करनेके लिए उपवास किया था। मगनलालका उपवास प्रायश्चित्तके रूपमें था और वह ठीक था।. ने उसे धोखा दिया। उसके पास इसका उपाय सिवा इसके कि वह स्वयं कष्ट सहन करे, दूसरा नहीं था । इसका असर उस कुटुम्बपर अच्छा हुआ है। किशोरलाल, भन्साली और मगनलाल तीनोंका स्वास्थ्य अच्छा है। अब इसमें मेरे लिए चिन्ताका कोई कारण नहीं ।

१. यह पत्र १ तथा ४ जनवरीके उन पत्रोंके सिलसिलेमें लिखा गया जान पड़ता है जिनमें गांधीजीने नारणदासको आनेके लिए लिखा था।

२. मगनलालके उपवास के उल्लेखसे ।

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