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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मेरी तबीयत अच्छी रहती है । इन दिनों में ४ सेर दूध पीता हूँ, जो बिस्कुट जमनाबहनने बनाकर भेजे हैं उनमें से ८ बिस्कुट खाता हूँ। मैं नियमित रूपसे घूमता- फिरता हूँ; अतः मेरे सम्बन्धमें तुम बिलकुल ही चिन्ता न करो ।

इसके साथ चि० मणिका पत्र तुम्हारे पढ़नेके लिए भेजता हूँ। इसे लौटाना जरूरी नहीं है ।

क्या कमलाके विवाह सम्बन्धमें कोई खबर अभीतक नहीं मिली ?

बापूके आशीर्वाद

गुजराती पत्र ( जी० एन० २८५५) की फोटो नकलसे ।

१२९. एक पत्र

साबरमती
१२ जनवरी, १९२६


प्रिय महोदय,

इतने दिनों तक आपका पत्र में अपने पास रखे रहा, ताकि थोड़ी-सी फुरसत मिलनेपर में उसका उत्तर दे सकूं।

मैं मोटे तौरपर यही कहूँगा कि आपने जैसा मुझे चित्रित किया है उसमें मुझे अपनी झांकी नहीं दिखाई पड़ती। आपने विचारोंको जिस ढंगसे पेश किया है, उसके कारण उनमें काफी बल दिखाई देता है ।

अब मैं उन्हें अपने ढंगसे पेश करता हूँ ।

१. मनुष्यके आध्यात्मिक विकासमें कलाका, जिसमें संगीत भी शामिल है, एक समुचित स्थान है । किन्तु एक समय ऐसा भी आता है जब वह उस कलासे ऊपर उठ जाता है । उसे इन्द्रियोंके माध्यम से ही अनुभूत और ग्रहीत किया जा सकता है। इस प्रकार कला, जैसा कि मैंने उसे समझा है, अपने-आपमें मनुष्यका लक्ष्य नहीं बन सकती ।

२. आनन्दित होनेके लिए जिस प्रकार आकाशके अनन्त सोन्दर्यको महसूस करनेवाले व्यक्तिको उसे चित्रपटपर उतारनेकी जरूरत नहीं रहती, ठीक उसी प्रकार आकाशके सौन्दयको अपने अन्तरमें देख पानेवाले व्यक्तिको ऊपरके स्थूल आकाशसे प्रेरणा लेनेकी भी जरूरत नहीं रहती। वास्तवमें, ये तीनों प्रक्रियायें साथ-साथ चलती हैं। सबसे सच्चा आन्तरिक आनन्द वही व्यक्ति अनुभव कर सकता है जिसने शारीरिक रूपसे अपनेको अन्धा, बहरा और गूंगा बना लिया हो ।

३. मेरा निश्चित विश्वास है कि अपने अहं, अपनी व्यष्टिमूलक भावना, वासना, अपने व्यक्तित्व, जो भी संज्ञा आप दें, को पूर्णतः मिटा देना ही परम आनन्द और शान्तिकी एक अनिवार्य शर्त है । लेकिन यहाँ प्रश्न उठता है कि यह व्यष्टि- मूलक भावना या व्यक्तित्व, इत्यादि हैं क्या ? में बौद्ध-निर्वाण और शंकराचार्यके