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वर्णभेदका पाप


वहाँ हर साल देवदर्शनार्थ जाता था, लेकिन अन्दर प्रवेश नहीं करता था, परन्तु इस मर्तबा वह भक्तिकी तीव्रताके कारण अपनेको भूल गया और दूसरे यात्रियोंके साथ अन्दर चला गया। पुजारी यह न जान पाया कि यह व्यक्ति दूसरे लोगोंके वर्णका नहीं है और उसने उसकी भेंट-पूजा स्वीकार कर ली। लेकिन जब उस पंचमको खयाल आया कि मैं पंचम जातिका हूँ और मैं उस स्थानमें आ पहुँचा हूँ जहाँ मेरा प्रवेश वर्जित है, तब वह डरा और मन्दिरसे भाग गया। परन्तु किसी व्यक्तिने जो उसे पहचानता था, उसे पकड़ लिया और पुलिसके हवाले कर दिया। मन्दिरके अधि कारियोंको जब इस बातका पता चला तब उन्होंने मन्दिरकी विधिवत् शुद्धि कराई। उसपर मुकदमा चला। एक हिन्दू मजिस्ट्रेटने धर्मका अपमान करनेका अपराधी मानकर उसपर ७५ रुपये जुर्माना किया; तथा साथ ही यह निर्णय भी सुनाया कि यदि जुर्माना न दे तो एक महीनेकी सख्त कैद भोगे। अपील की गई और उसपर बड़ी लम्बी बहस हुई। पहला फैसला रद किया गया। उसे निर्दोष पानेपर मुक्त कर देनेका कारण यह नहीं था कि अदालत उस गरीब पंचमका मन्दिरमें जानेका हक मानती थी; बल्कि कारण यह था कि नीचेकी अदालत धर्मका अपमान साबित करना भूल गई थी। इस फैसलेसे न्याय, सत्य, धर्म या नैतिकता किसीकी भी विजय नहीं मानी जा सकती।

इस अपीलके सफल होनेसे सन्तोष केवल यही हो सकता है कि यदि कोई पंचम भक्तिके आवेशमें आकर अपनेको भूल जाये और उसे इस बातका खयाल न रहे कि उसके लिए मन्दिरमें प्रवेश करना वर्जित है तो उसे उस कारण सजा न भुगतनी होगी लेकिन यदि वह पंचम या उसके साथका कोई दूसरा पंचम मन्दिरमें प्रवेश करनेकी फिरसे हिम्मत करे तो बहुत सम्भव है कि जो लोग उनको घृणाकी दृष्टिसे देखते हैं वे यदि उन्हें मनमाने ढंगसे दण्डित करें तो अदालत उनको सख्त सजा अवश्य देगी।

यह स्थिति एक विचित्र स्थिति है। दक्षिण आफ्रिकामें हमारे देशवासियोंके प्रति जो व्यवहार किया जाता है उससे हमें बड़ा रोष होता है; और हमारा ऐसा करना उचित ही है। हम लोग स्वराज्य प्राप्त करनेके लिए अधीर हो रहे हैं। लेकिन हम हिन्दू लोग अपने सहधर्मावलम्बियोंके पांचवें भागको कुत्तोंसे भी बुरा समझकर उनके साथ व्यवहार करनेमें जो अनौचित्य है उसे देखने से इनकार करते हैं; कुत्ते हमारे यहाँ अस्पृश्य नहीं हैं! हम लोगोंमें से कुछ तो उन्हें अपने बैठककी शोभा समझकर पालते हैं।

हमारी स्वराज्यकी योजना में 'अस्पृश्यों' का क्या स्थान होगा? यदि स्वराज्यमें उन्हें सब प्रकार की विशेष कठिनाइयोंसे तथा निर्योग्यताओंसे मुक्त कर दिया जानेवाला है तो हम आज ही उनकी स्वतन्त्रताका ऐलान क्यों नहीं करते? और यदि आज हम ऐसा करनेमें असमर्थ हैं तो क्या स्वराज्य मिलनेपर हम लोग आजकी अपेक्षा कुछ कम असमर्थ होंगे ?

इन प्रश्नोंके बारेमें हम अपनी आँखें और कान भले बन्द कर लें, लेकिन पंचम जातिवालोंके लिए तो यह प्रश्न बड़े ही महत्त्वका प्रश्न है। यदि हम लोग इस सामा-