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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जिक और धार्मिक अत्याचारके विरुद्ध एक होकर खड़े न होंगे तो यहनिश्चित है कि दोष हिन्दूधर्मके माथे ही मढ़ा जायेगा ।

इस बुराईको दूर करनेके लिए अवश्य ही बहुत कुछ किया जा चुका है। लेकिन जबतक मन्दिरोंमें जानेके लिए उनपर फौजदारी मामला चलाया जाना सम्भव है और नीच वर्णोंको मन्दिरमें जानेका, सार्वजनिक कुओंपर पानी भरनेका और उनके बच्चोंको राष्ट्रीय शालाओं में बिना किसी रुकावटके जानेका अधिकार नहीं दिया जाता, तबतक यह सब काम कुछ नहीं के बराबर है। हमें चाहिए कि हम उन्हें वे सारे हक दे दें जिन्हें हम दक्षिण आफ्रिका में यूरोपीय लोगोंके द्वारा अपने देशवासियों के लिए चाहते हैं ।

लेकिन इस मामले में भी कुछ सन्तोषकारक बातें हैं ही नहीं, ऐसा नहीं है । अवश्य ही यह थोड़े बहुत सन्तोषका विषय है कि उसको जो सजा दी गई थी वह रद कर दी गई। लेकिन अधिक सन् का विषय तो यह है कि बेचारे रोब पंचमोंकी तरफसे अब सवर्ण हिन्दू भी सक्रिय दिलचस्पी दिखा रहे हैं। यदि अप- राधीकी मददको कोई न पहुँचा होता तो इस अपीलपर किसीका ध्यान भी न जाता। श्री राजगोपालाचारीका अपीलकी पैरवी करना कुछ कम आनन्दवर्धक बात नहीं है। मेरे खयालसे असहयोगके सिद्धान्तका यह उचित प्रयोग था । यदि उनकी पैरवी करनेपर मुद्दालेहके छूटनेकी सम्भावना रहते हुए भी यदि वे हम तो असहयोगी हैं", इस घमण्ड भरे खयाल गर्क केवल हाथपर-हाथ धरे बैठे रहते तो वह एक पाखण्ड ही माना जाता। उस पंचमको असहयोगका कुछ भी ज्ञान न था। उसने तो जुर्माना या कैदकी सजा माफ करनेके लिए ही अपील की थी। वांछित यह है कि हरएक शिक्षित हिन्दू अस्पृश्योंका मित्र बन जाये और धर्मके नामपर किये गये रूढ़िजनित अत्याचारसे उनकी रक्षा करना अपना कर्त्तव्य माने। पंचम वर्गके व्यक्तिका मन्दिरमें जाना धर्मका अपमान नहीं है, उनके मन्दिरमें जानेका निषेध धर्मका और मनुष्यत्वका अपमान है।

[ अंग्रेजीसे ]

यंग इंडिया, १४-१-१९२६