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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

जनरल बोथाके पास नौ हजार एकड़का फार्म था। वे खेतीकी सभी बारीकियोंको जानते थे। जब वे सन्धि करनेके लिए यूरोप गये थे तब उनके सम्बन्धमें यह कहा गया कि भेड़ोंकी परीक्षामें उनके समान कुशल मनुष्य यूरोपमें कोई शायद ही होगा । इन्हीं जनरल बोधाने स्वर्गीय राष्ट्रपति क्रूगरका स्थान लिया । उनका अंग्रेजी भाषाका ज्ञान बहुत अच्छा था, फिर भी जब वे इंग्लैंडमें बादशाहसे और मन्त्रियोंसे मिले तब उन्होंने सदा अपनी भाषामें ही उनसे बातचीत करना पसन्द किया। कौन कह सकता है कि उनका यह कार्य ठीक नहीं था ? वे अपना अंग्रेजी भाषाका ज्ञान बतानेके लिए गलती करनेकी जोखिम क्यों लेते ? वे अंग्रेजी भाषाके उपयुक्त शब्द ढूंढनेके लिए अपनी विचार-श्रृंखलाको भंग करनेकी सम्भावनाके फेरमें क्यों पड़ते ? अंग्रेज मन्त्री अनजाने ही अंग्रेजी भाषाके एकाध अप्रसिद्ध मुहावरेका उपयोग करते और जनरल बोथा उसका ठीक अर्थ न समझकर उसका कुछका कुछ उत्तर दे देते अथवा कदाचित् वे घबरा जाते तो उससे उनके कार्यको हानि पहुँचती । वे इस तरहकी गम्भीर भूल क्यों करते ?

जैसे बोअर पुरुष वीर और सरल हैं वैसे ही बोअर स्त्रियाँ भी वीर और सरल हैं। बोअर पुरुष बोअर युद्धमें अपना इतना खून बहा सके और इतना बड़ा बलिदान कर सके सो अपनी स्त्रियोंके साहस और प्रोत्साहनके कारण ही । इन स्त्रियों- को न विधवा होने का भय था और न अपने भविष्य की चिन्ता । मैं ऊपर कह चुका हूँ कि बोअर लोग धर्मपरायण ईसाई हैं । किन्तु वे ईसाके नये करारको मानते हैं, ऐसा नहीं कहा जा सकता। ठीक तरहसे देखें तो नये करारको तो यूरोपके लोग भी कहाँ मानते हैं; यद्यपि यूरोपके कुछ लोग ईसाके शान्ति धर्मको मानते हैं और उसका पालन करते हैं, फिर भी यूरोपमें नये करारको माननेका तो सिर्फ दावा ही दावा है। बोअर लोगोंके बारेमें तो यही कहा जा सकता है कि वे नये करारके नाम मात्र से ही परिचित हैं, पुराने करारको वे बड़े प्रेमसे पढ़ते हैं और उसमें युद्धोंका जो वर्णन आता है उसे कण्ठस्थ करते हैं। वे पैगम्बर मूसाके 'दाँतके बदले दाँत' और 'आँखके बदले आंख' के सिद्धान्तमें पूरा विश्वास करते हैं और अपने विश्वासके अनुसार उसपर आचरण भी करते हैं ।

अपनी स्वतन्त्रताकी रक्षाके लिए जितना दुःख सहन करना पड़ा उसे बोअर स्त्रियोंने भी धर्मका आदेश समझकर धैर्यपूर्वक और प्रसन्नतापूर्वक सहन किया । स्वर्गीय लॉर्ड किचनरने इन स्त्रियोंको झुकानेका उपाय करनेमें कोई कमी नहीं रखी। उनको अलग-अलग बाड़ोंमें बन्द किया गया और उन्हें इन बाड़ोंमें असह्य कष्ट सहन करने पड़े। उन्होंने खाने-पीने का दुःख भी सहा और जबरदस्त सरदी और गरमी भी सही । कभी-कभी इन्हें शराबके नशे में चूर अथवा काम-विकारसे मत्त सैनिकोंके अत्याचार भी सहने पड़े। इन बाड़ोंमें अनेक प्रकारकी आफतें उनपर आईं,

१. १९०२ में जब बोअर-युद्ध समाप्त हुआ, कोई २००,००० व्यक्ति कारागार शिविरोंमें नजरबन्द थे। लगभग ४,००० स्त्रियों और १६,००० बच्चोंकी भूख और बीमारीके कारण मृत्यु हुई। - वॉकर : हिस्ट्री ऑफ साउथ आफ्रिका