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दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास

किन्तु ये वीर स्त्रियाँ नहीं झुकीं । अन्तमें स्वयं बादशाह एडवर्डने लॉर्ड किचनरको लिखा, 'यह सब मेरी सहन-शक्तिके बाहर है। यदि बोअरोंको झुकानेका हमारे पास यही उपाय हो तो इसकी अपेक्षा तो किन्हीं भी शर्तोपर सुलह कर लेना मुझे ज्यादा पसन्द है। आप लड़ाईको जल्दी खतम करें ।'

जब इन सब कष्टों और अत्याचारोंके समाचार इंग्लैंड पहुँचे तब अंग्रेज जनता- को बहुत सन्ताप हुआ। लोग बोअरोंकी वीरताके बारेमें जानकर चकित रह गये । एक छोटी-सी जातिने सारी दुनियामें फैले हुए साम्राज्यको नाकमें दम कर दिया, यह बात पहले अंग्रेजोंके मनमें खटकती थी; किन्तु जब इन बाड़ोंमें कैद स्त्रियोंका आर्तनाद, लड़ाईमें जूझते हुए उनके पुरुषोंके मार्फत नहीं, बल्कि इक्के-दुक्के उदारमना अंग्रेज स्त्री-पुरुषोंके मार्फत, जो उस समय दक्षिण आफ्रिकामें थे, वहाँ पहुँचा तब अंग्रेज लोगोंके मन अनुतापसे भर गये । स्वर्गीय सर हेनरी कॅम्बेल बैनरमैनन अंग्रेजोंके हृदयके इस अनुतापको समझा और युद्धके विरुद्ध जोरदार आवाज उठाई। स्वर्गीय श्री स्टेडने सार्वजनिक रूपसे ईश्वरसे युद्धमें अंग्रेजोंकी पराजयकी प्रार्थना की और साथ ही दूसरे लोगोंको भी. ऐसी प्रार्थना करने के लिए प्रेरित किया । यह दृश्य विस्मयजनक था । शुद्ध मनसे सहन किया गया सच्चा दुःख पत्थर जैसे हृदयको भी पिघला देता है। इस दुःख-सहनकी अथवा तपस्याकी ऐसी ही महिमा है और यही सत्याग्रहका रहस्य है।

इसके परिणामस्वरूप वेरोनिगिंगको सन्धि' हुई और दक्षिण आफ्रिकाके चारों उपनिवेश एक शासनके नीचे आ गये । यद्यपि इस सन्धिकी बात अखबार पढ़नेवाले सभी हिन्दुस्तानी जानते हैं, फिर भी एक दो बातें ऐसी हैं जिसका ज्यादातर लोगोंको अनुमान भी नहीं हो सकता । दक्षिण आफ्रिका के चारों उपनिवेश वेरीनिगिंगकी सन्धि होते ही एक नहीं हो गये। उनमें से प्रत्येककी अपनी विधानसभा थी। उनके मन्त्रि- मण्डल इन विधानसभाओंके प्रति पूरी तरह उत्तरदायी नहीं थे। ट्रान्सवाल और ऑरेंज फ्री स्टेटका शासन सम्राट्के अधीनस्थ उपनिवेशोंकी तरह चलाया जाता था। जनरल बोथाको अथवा जनरल स्मट्सको ऐसे संकुचित अधिकारसे सन्तोष होना कठिन था । फिर भी लॉर्ड मिलनरने बिना वरकी बरात निकालना ठीक समझा । फलतः जनरल बोया विधानसभासे अलग रहे। उन्होंने असहयोग किया और सरकारसे कोई सम्बन्ध रखनेसे साफ इनकार कर दिया। लॉर्ड मिलनरने एक कटु भाषण दिया और कहा कि जनरल बोथाको यह मान लेनेकी कोई जरूरत नहीं है कि राजकाज उन्हींके चलाये चलेगा। वह उनके बिना भी चल सकेगा।

मैंने बोअरोंकी वीरता, स्वातन्त्र्य-प्रियता और त्याग भावनाकी प्रशंसा निस्संकोच होकर की है; फिर भी मैं पाठकोंको इस गलतफहमीमें नहीं डालना चाहता कि संकट-कालमें उनमें कोई मतभेद ही नहीं हुआ अथवा उनमें दुर्बल व्यक्ति थे ही नहीं। बोअरोंमें लॉर्ड मिलनर सहज सन्तुष्ट होनेवाले एक पक्षको खड़ा करनेमें समर्थ हो गये और उन्होंने यह मान लिया कि वे उसकी सहायतासे विधान सभामें काम चलानेमें

२. प्रिटोरिया में ३१ मई, १९०२ को ।

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