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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


इस दोषारोपणको साबित करना बहुत ही कठिन है, विशेषकर असहाय अछूतोंके सम्ब- न्धमें। म्युनिसिपल कमिश्नर महोदय यदि सचाई जानना चाहते हैं तो उन्हें वही काम करना चाहिए जो विक्रमादित्यने किया था। वे वेष बदलकर निकलें और देखें कि नौकरी दिलाने या वेतनमें तरक्कीके लिए वे इन गरीब आदमियोंके पाससे दस रुपयेका नोट हथियाने में सफल होते हैं या नहीं। यदि मानवताके हितमें म्युनिसिपल कमिश्नर इस बातका पता लगानेके लिए कि उनके शासनमें लोगोंके सताये जानेकी रिपोर्ट सच है या नहीं, कटिबद्ध हैं तो यह तो पक्की बात है कि उन्हें साधारण लोगोंकी भाषा सीखनी होगी और अपने मातहतों-जैसा पहनावा भी पहनना होगा।

[अंग्रेजीसे]

यंग इंडिया, १४-१-१९२६

१३५. पत्र: नाजुकलाल एन० चौकसीको

बृहस्पतिवार, १४ जनवरी, १९२६

भाईश्री ५ नाजुकलाल,

तुम्हारा आजका पत्र मिला। चित्तको बहुत शान्ति हुई। मोतीका पत्र इसके साथ है। मैं चाहता हूँ कि तुम यहाँ आ जाओ। मोती वसन्त पंचमीके मुहूर्तको टलने देना नहीं चाहती। तुम्हारे साथ ही मरना-जीना चाहती है। वह तो तुम्हारी सेवामें हाथ बँटाना चाहती है; इसलिए तुम्हारे अच्छे हो जानेपर ही विवाह हो, ऐसा नहीं चाहती। तुम अपंग रहो तो भी वह तुम्हीं से विवाह करना चाहती है। भाई लक्ष्मीदास, बेलाबहन और मैं तीनों ही उससे सहमत है। इसलिए विवाहकी तिथिको स्थगित मत मानना। तुम चाहो तो हम विवाह वहीं करें। मुझे तार दे देना। हम विवाह विधि बिलकुल शान्तिसे सम्पन्न करायेंगे। तुम्हें तनिक भी उत्तेजना नहीं होने देंगे। और संस्कारमें बहुत ज्यादा लोगोंको भी नहीं बुलायेंगे।

मोहनदासके आशीर्वाद

गुजराती पत्र (एस० एन० १२१०८) की फोटो-नकलसे ।