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१३६. पत्र : शान्तिकुमार मोरारजीको

शुक्रवार, १५ जनवरी, १९२५

चि० शान्तिकुमार,

तुम्हारा पत्र मिला। तुमने जो कागजात भेजे हैं वे दिलचस्प हैं। मैं उन्हें पढ़ गया हूँ। तुम चरखा संघके सदस्य बनोगे, यह जानकर मुझे खुशी हुई।

पुरस्कार दो निबन्धोंपर देने हैं। दोनों फिलहाल काशीमें हैं। पुरस्कार विजेता उनकी जाँच कर रहे हैं। उन्हें मँगवाकर तुम्हें भेजनेकी तजवीज करूँगा।

चरखेके प्रति मंसूरके महाराजाके प्रेमका समाचार मुझे मिल चुका है।

तुम गुजराती में पत्र लिखनेका अभ्यास जारी रखोगे तो तुम्हारी लिखावट और भाषा दोनों सुधर जायेंगी ।

बापू के आशीर्वाद

गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ४७००) की फोटो-नकलसे।

सौजन्य : शान्तिकुमार मोरारजी

१३७. पत्र : शिवाभाई पटेलको

माघ सुदी १ [१५ जनवरी, १९२६]

भाई शिव। भाई,

तुम्हारा पत्र मिला। तुम अपनी स्त्रीका सर्वथा त्याग नहीं कर सकते; लेकिन तुम ब्रह्मचर्यका पालन करना चाहो तो कर सकते हो। मनुष्य काम भावको दबा सकता है और सो तो उसे दबाना चाहिए। अवश्य ही जीवनपर्यन्त ब्रह्मचर्यका पालन करनेवाले व्यक्ति मिलते हैं। विवाहित भी ब्रह्मचर्यका पालन कर सकते हैं।

तुम्हें अपनी पत्नीको शिष्या मानकर पढ़ाना चाहिए। प्रयत्न करनेसे उसकी बुद्धि विकसित हो सकती है। तुम्हें उसके साथ एकान्त सेवन नहीं करना चाहिए। दोनोंके सोनेको व्यवस्था अलग-अलग कमरोंमें रहनी चाहिए। यदि परिणाममें वह व्यभिचार करे तो उसका दोष तुम्हें बिलकुल नहीं लगेगा। उस अवस्थामें तुम उसका सर्वथा त्याग कर सकते हो।

१. खादी विषयक

२. एस० वी० पुण्ताम्बेकर, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालयके एक प्राध्यापक और एन० एस० वरदाचारी, तमिलनाडके एक कांग्रेसी कार्यकर्ता।

३. साधन-सूत्रमें हिन्दू संवत्सरको तिथिके नीचे “१९८२” लिखा हुआ है।