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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


यदि तुम्हारी इच्छा चरोतर शिक्षा मण्डलमें सम्मिलित होनेकी हो तो मैं उसमें कोई दोष नहीं देखता। जो खुद असहयोगको धर्म मानता हो वह तो उसमें सम्मिलित नहीं हो सकता।

तुम किसी असहयोगी संस्थामें रहो तो भी आश्रममें तो अवश्य ही नहीं रह सकते। मुझे लगता है कि मैंने तुम्हारे सारे प्रश्नोंके उत्तर दे दिये। कुछ विशेष पूछना उचित लगे तो अवश्य ही फिर लिखना।

मोहनदास गांधीके वन्देमातरम्

गुजराती पत्र (सी० डब्ल्यू० ४०५) से।

सौजन्य : शिवाभाई पटेल

१३८. पत्र : नाजुकलाल एन० चौकसीको

शुक्रवार, १५ जनवरी १९२६


भाईश्री ५ नाजुकलाल,

तुम्हारा पत्र मिल गया। उसे पढ़कर हम सबको प्रसन्नता हुई। अब दिन थोड़े ही हैं। यदि तुम आ सको तो मोतीका पाणिग्रहण करनेके लिए रविवार अथवा सोमवारको आ जाओ। यदि इसमें जोखिम हो और तुम चाहो तो मोतीको वहाँ बड़ोदा भेज दूं। साथमें विधि सम्पन्न करानेके लिए पण्डितजी आ जायेंगे और हममें से भी कोई-न-कोई तो आयेगा ही। बहुत सम्भव तो यह है कि लक्ष्मीदास, बेलाबहन और महादेव आयेंगे। यदि तुम्हें लगे कि तुम्हारे लिए अभी विवाहका उल्लास भी वांछनीय नहीं है तो तुम यह बात कहने में संकोच न करना। अब तुम्हारा हित किस बातमें है, केवल यही बात विचारणीय है। अब तो तुम्हारी ही दृष्टिसे मोतीकी सार- सम्भाल हम लोगोंका इष्ट है। वसन्त पंचमीका मुहूर्त न टले ऐसा हम सब चाहते हैं; लेकिन तुम्हारे स्वास्थ्यकी रक्षा उससे भी अधिक चाहते हैं। वसन्त पंचमी टल जायेगी तो तुम जिस दिन और जिस मुहूर्तको ठीक समझोगे हम उस दिन और उसी घड़ी मोतीको तुम्हें सौंप देंगे।

ईश्वर तुम दोनोंको दीर्घायु और सुखी रखे तथा तुम्हारे हाथों देश और धर्मकी सेवा हो।

मोहनदासके आशीर्वाद

गुजराती पत्र (एस० एन० १२१०९) की फोटो-नकलसे।