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१४१. पत्र : नाजुकलाल एन० चौकसीको

आश्रम

माघ सुदी २ [१६ जनवरी, १९२६]

भाईश्री ५ नाजुकलाल,

तुम्हारा पत्र मिल गया। हम सोमवारको तुम्हारी राह देखेंगे। तुम्हें लेनेके लिए अहमदाबाद स्टेशनपर कोई-न-कोई अवश्य आयेगा। तुम मोटरमें लाये जाओगे, जिससे तुम्हें झटके ज्यादा न लगें। यदि तुम विरोध नहीं करोगे तो विवाह तो सम्पन्न किया ही जायेगा। बादमें यदि तुम उसी दिन जानेके लायक हुए अथवा तुमने जाना चाहा तो चले जाना; नहीं तो हम तुम्हारी सेवा-शुश्रूषा यहीं करेंगे। ईश्वर तुम्हारी रक्षा करे और तुम्हारी यहाँकी यात्रा सफल हो।

मुझे तो यह सारी घटना बहुत प्रिय लगती है।

मोहनदासके आशीर्वाद

[पुनश्च :]

तुम्हारे पहुँचनेतक मैं मौन तोड़नेकी तैयारी तो कर ही चुकूँगा। तुम्हारी गाड़ीके समयका पता लगाकर मौन लूंगा, जिससे तुम्हारे जानेतक बोलने लगूं।

गुजराती पत्र (एस० एन० १२११२) की फोटो-नकलसे।

१४२. तीन महत्त्वपूर्ण प्रश्न

एक सज्जनने बड़े ही विनम्र भावसे तीन प्रश्न हिन्दीमें पूछे हैं। उनकी हिन्दी इतनी सरल है कि मैं वे प्रश्न हिन्दी भाषामें ही, गुजराती लिपिमें नीचे दे रहा हूँ। लेखकने इन प्रश्नों के साथ तत्सम्बन्धी उपायोंके विषयमें अपने सुझाव भी भेजे हैं। परन्तु स्थानाभावके कारण उन्हें मैं यहां नहीं दे रहा हूँ। प्रश्न इस प्रकार हैं:

(१) वर्णभेद आप जन्मजात मानते हैं। किन्तु यह भी आपकी मान्यता है कि किसी आदमीको कोई भी कर्म करनेमें हर्ज नहीं तथा किसी भी आदमीमें ब्राह्मण, क्षत्रिय, या वैश्यादि द्विजोंके गुण आ सकते हैं। ऐसी हालत में वर्णकी पदवीकी क्या जरूरत है? सिर्फ जन्मसे नामका आरोपण क्यों? जन्मको इतना महत्त्व क्यों?
(२) आप अद्वैतवाद मानते हैं और यह भी कहते हैं कि सृष्टि अनादि, अनन्त तथा सत्य है। अद्वैतवाद सृष्टिके अस्तित्वसे इनकार करता है। आप