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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

नहीं सकती। उल्लेखके अभावकी जवाबदेही मुझपर या महादेव देसाईपर ही हो सकती है। मैं तो यह जानता हूँ कि इसके लिए मैं जवाबदेह नहीं हूँ और महादेवके मनमें घृणा होना मैं असम्भव मानता हूँ। लेकिन जहाँ डाकगाड़ीकी तरह तेजीसे लिखा जा रहा हो वहाँ किसी बातका उल्लेख रह जाये, यह सम्भव है। मैं सूपा गुरुकुलके प्रयत्नको प्रशंसनीय प्रयत्न मानता हूँ। उसके अधिष्ठाताके उत्साहकी ओर मेरा ध्यान आकर्षित हुआ था। मैंने उन्हींके उत्साहके वश होकर वहाँ जाना स्वीकार किया था। मैंने यह देखा कि वहाँ खादीके लिए अच्छा प्रयत्न किया जा रहा है। मैं यह मानता हूँ कि गुरुकुल भी शिक्षा क्षेत्र में अच्छा योगदान कर रहा है। मैं उसकी उन्नतिकी कामना करता हूँ।

[गुजरातीसे]

नवजीवन, १७-१-१९२६

१४४. मथुरादास त्रिकमजीको लिखे पत्रका अंश

१७ जनवरी, १९२६

डाक्टर जितना कहता है, रोग उतना लम्बा चलेगा, ऐसा मेरा खयाल नहीं है। लेकिन तुम्हें जबतक पूरा आराम न आ जाये, तबतक वहाँ रहना चाहिए, इस बारेमें मुझे कोई शंका नहीं है।

[गुजरातीसे]

बापुनी प्रसादी

१४५. भाषण : विवाहोत्सवपर [१]

१८ जनवरी, १९२६

विवाहके अवसरपर हम दो काम करते हैं। आश्रमकी ओरसे वर-वधूको आशीर्वाद देते हैं तथा आश्रम अपने आदशोंसे प्रतिकूल प्रवृत्तिका सामना किस तरह करे, इस बातका विचार करते हैं।

अहिंसावादी बलप्रयोग नहीं कर सकता, इसलिए व्रतपालनमें जबर्दस्ती नहीं की जानी चाहिए और न की जा सकती है। मेरा और मेरे साथियोंका अनुभव है कि यदि समझ आ जाये तो ब्रह्मचर्यका पालन करना सहल है। लेकिन उसे बुद्धिसे नहीं, हृदयसे समझना चाहिए। वह बुद्धिका विषय नहीं है। इसीसे शास्त्र इस बातपर जोर देते हैं कि शायद ही कोई मनुष्य मन, वचन और कर्मसे इसका पालन कर सकता है।

इसका पालन दूसरी तरहसे भी मुश्किल हो जाता है। हमारे प्रयोग संसारकी

सामान्य प्रवृत्तिके विरुद्ध हैं। लोक-व्यवहारको निभाते हुए ब्रह्मचर्यका पालन करना

  1. १. नाजुकलाल चौकसी और मोतीबहनके विवाहके अवसर पर।