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भेंट: लैंजलॉथ और केलीसे


मालाओंके आयोजन और फुलझड़ीके समान चित्ताकर्षक परन्तु अस्थायी प्रभाव उत्पन्न करनेवाले कार्यक्रमों से होती है। फिलहाल जबतक मैं अपने ही देशके लोगों द्वारा उसे अपना लिये जानेकी आशा दृढ़ नहीं कर लेता, आप मेरे सन्देशका अध्ययन मेरे लेखोंके जरिये करें और उनमें सुझाये गये मार्गपर चलनेकी कोशिश करें। अभी तो मेरे समयके प्रत्येक क्षणका सदुपयोग यहीं हो रहा है; यदि मैं अपना काम छोड़कर अमेरिका जाऊँ तो वह अपनी अन्तरात्माके विरुद्ध आचरण करना होगा।

श्रीमती केली और श्रीमती लैंजलॉथ गांधीजीकी बातके औचित्यके विषयमें आश्वस्त हो गईं; ऐसा लगा। परन्तु विदा होनेके पहले उन्होंने एक दो प्रश्न और पूछे, "श्री गांधी ! क्या यह सच है कि आप प्रतिक्रियावादी हैं ? मैंने आपके अपने देशके कुछ लोगोंको ऐसा कहते सुना है।" [गांधीजीने पूछा: ]

वे लोग 'प्रतिक्रियावादी 'का क्या अर्थ लगाते हैं ? यदि उनका आशय सविनय अवज्ञा करने और कानून तोड़नेवालेसे है, तो मैं इन वर्षोंमें यही करता रहा हूँ। परन्तु यदि उनका अभिप्राय यह है कि मैं अन्य सब तरीकोंको छोड़कर अहिंसाको अपना लेने और चरखेको अहिंसाका प्रतीक माननेके कारण प्रतिक्रियावादी कहा जाने योग्य हूँ तो फिर उनका कहना सही है।

श्रीमती केली इसपर कुछ नहीं कह सकीं; किन्तु उनके बादके प्रश्नोंसे भलीभाँति अनुमान लगाया जा सकता था कि उनके मनमें क्या है। हेनरी फोर्डने अपनी अनूठी आत्मकथाम जिन्हें वे 'प्रतिक्रियावादी' कहते हैं, एक प्रकारके ऐसे सुधारकोंका जिक्र किया है; उनका मतलब पुरानी बातोंकी पुनःप्रतिष्ठा करनेके प्रयत्नमें लगनेवाले सुधारकों- से है। श्रीमती केलीका दूसरा प्रश्न था, "क्या यह सच है कि आप रेलवे, भापसे चलनेवाले जहाजों तथा आवागमनके अन्य तेज चलनेवाले साधनोंके खिलाफ हैं ?"

यह सच है, और सच नहीं भी है। आपको वस्तुतः मेरी पुस्तक 'हिन्द स्वराज्य' पढ़नी चाहिए। उसमें मैंने इस सम्बन्धमें अपने विचार प्रकट किये हैं। यह बात इस अर्थमें सच है कि आदर्श परिस्थितियों में हमें इन चीजोंकी आवश्यकता नहीं होनी चाहिए; और इस अर्थमें सच नहीं है कि आजकल इन चीजोंसे अपनेको अलग रखना कोई सरल काम नहीं है। पर क्या संसार यातायातके इन तेज चलनेवाले साधनोंकी बदौलत कुछ अधिक सुखी हो पाया है ? ये साधन मनुष्यकी आध्यात्मिक प्रगतिको किस प्रकार सुगम बनाते हैं? क्या ये अन्ततोगत्वा उसमें रुकावट नहीं डालते? क्या मनुष्यकी महत्वाकांक्षाओंकी कोई सीमा है ? एक समय था जब हम एक घंटेमें कुछ मील चलकर ही सन्तुष्ट हो जाते थे। आज हम चाहते हैं कि हम एक घंटेमें सैकड़ों मीलकी यात्रा कर लें। एक दिन ऐसा आयेगा कि जब हम चाहेंगे कि हम अन्तरिक्ष में उड़ें। इसका परिणाम क्या होगा ? अव्यवस्था। हम एक-दूसरेसे टकराने लगेंगे, हमारा दम घुटने लगेगा और हम नष्ट हो जायेंगे।

श्रीमती केलीने प्रश्न किया, "क्या जनता इन चीजोंको पसन्द नहीं करती ?"

करती है, मैंने देखा है कि रविवार और छुट्टीके दिन लोग लगभग बदहवास हो जाते हैं। लन्दनमें हर सड़कपर मोटर गाड़ियोंकी अंन्तहीन कतारें एक आम बात