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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हो गई है। यह सारी परेशानी और यह जानलेवा जल्दबाजी किसलिए? इसका उद्देश्य क्या है? मैं आपको अपने मनकी बात बताता हूँ कि यदि दैवयोगसे ये सबके-सब उपकरण एकाएक नष्ट हो जायें, तो मैं इनके लिए एक भी आँसू नहीं बहाऊँगा। मैं तो यही कहूँगा कि इस तूफानका आना ठीक हुआ; बखेड़ा मिटा, ऐसा ही होना चाहिए था।

श्रीमती केलीने पूछा : “किन्तु मान लीजिए कि आपको कलकत्ता जानकी जरूरत पड़ गई है; आप रेलगाड़ीसे नहीं तो और किस प्रकार जायेंगे ?"

निश्चय ही रेलगाड़ीसे। किन्तु मुझे कलकत्ता जानेकी आवश्यकता क्यों हो ? जैसा कि मैंने कहा है, आदर्श परिस्थितियों में मुझे इतनी लम्बी दूरी तय करनेकी आवश्यकता ही नहीं हो सकती और बहुत ही कम अवधिमें तो कदापि नहीं। इसे मैं और स्पष्ट किये देता हूँ। आज अमेरिकासे अगर दो भले आदमी दया और प्यार- का सन्देश लेकर यहाँ आते हैं, तो उनके साथ अन्य दो सौ व्यक्ति अन्य कितनी तरहके उद्देश्योंको लेकर आते हैं। हमने तो यही देखा है कि उनमें से ज्यादातर लोग केवल शोषणकी और गुंजाइश ढूंढ़नेके लिए आते हैं। क्या इसे जल्दी पहुँचानेवाले वाहनोंका भारतके लिए लाभ मानें ?

श्रीमती केलीने कहा: "हाँ, मैं समझी; किन्तु हम उस आदर्श परिस्थितिको कैसे वापस ला सकते हैं ?"

सो सहज नहीं होगा। हम जिस गाड़ीमें बैठे हैं वह एक डाक गाड़ी है और भयानक गतिसे दौड़ रही है। हम उससे एकदम कूद कर बाहर नहीं आ सकते और कूद भी जायें तो उस एक ही छलाँगमें आदर्श स्थितितक पहुँचने में सफल नहीं हो सकते। हम भविष्यमें कभी किसी दिन वहाँ पहुँचनेकी आशा जरूर कर सकते हैं।

संक्षेपमें प्रतिक्रियावादिता, यदि वह वास्तव में प्रतिक्रियावादिता हो, साधारण विवेककी ओर मुड़ना ही है। यह सभी समझ सकते हैं कि उस सामान्य विवेकको पुनः स्थापित करना एक स्वाभाविक व्यवस्थाकी स्थापना करना ही है। आज जो विद्यमान है यह अस्वाभाविक व्यवस्था है। संक्षेपमें कहा जाये तो इस प्रतिक्रियावादिताका अर्थ किसी वस्तुको उलट-पुलट या विकृत करना नहीं है, बल्कि उसे उचित स्थानपर पहुँचा देना है।

[अंग्रेजीसे]

यंग इंडिया, २१-१-१९२६