पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 29.pdf/४३५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

१४७. अस्पृश्यताकी हिमायत

त्रावणकोरसे एक महाशय लिखते हैं:

जाना पड़ता है आपको ब्राह्मणों और उनके आचार अथवा रीति-रिवाजोंके सम्बन्धमें कुछ गलतफहमी हो गई है। आप अहिंसाको प्रशंसा करते हैं, लेकिन केवल हम ब्राह्मणोंकी ही एक ऐसी जाति है जो उसे धर्मकार्य समझकर उसका पालन करती है। यदि हमारे समाजका कोई व्यक्ति उसका भंग करता है तो हम उसे जातिसे बहिष्कृत समझते हैं। जो लोग मांस खाते हैं या मांसके लिए वध करते हैं उनके सहवासमें जाना ही हम लोगोंकी दृष्टिमें पाप है। कसाई, मछुवे, ताड़ी बनानेवाले, मांस खानेवाले, शराब पीनेवाले और धर्मके विरुद्ध चलनेवाले मनुष्यके नजदीक आने तकसे हमारा नैतिक और भौतिक वायुमण्डल भ्रष्ट हो जाता है। हमारे तप और धार्मिकताकी हानि होती है। और पवित्रताका मंगलकारी प्रभाव नष्ट हो जाता है।

इसे हम लोग भ्रष्टता मानते हैं और इसलिए हमें तुरन्त स्नान करना पड़ता है। यद्यपि समय और भाग्यने कई मर्तबा पलटा खाया है; लेकिन ऐसे नियमोंको बदौलत ही ब्राह्मण लोग अबतक अपने परंपरागत गुणोंकी रक्षा कर सके हैं। यदि इस प्रकारसे संयमको दूर कर दिया जायेगा और ब्राह्मणोंको दूसरोंसे स्वतन्त्रतापूर्वक मिलने जुलनेको कहा जायेगा तो धीरे-धीरे उनका इतना अधःपतन होगा कि वे नीचोंसे भी नीच, शूद्रोंके समान बन जायेंगे। छुपे तौरसे वे दुराचार करेंगे, पवित्र होनेका ढोंग भी करेंगे और साथ-ही-साथ संयमको मर्यादाको तोड़नेका भी प्रयत्न करेंगे, क्योंकि इस मर्यादाके कारण अपने पापोंको छिपानमें उन्हें बड़ी कठिनाई मालूम होती है। हम जानते ही हैं कि आज जो ब्राह्मण नाममात्रके ब्राह्मण रहे गये हैं वे ऐसे ही हैं और वे लोग अपने गिरे हुए स्तरपर दूसरोंको खींच ले जानेके लिए भगीरथ प्रयत्न कर रहे हैं।

उस स्थानमें जहाँ लोगोंको उनकी आदतों और उनके सदसद् विवेकके अनुसार (रंग, अधिकार और घनके भेदके अनुसार नहीं जैसा कि पश्चिममें किया जा रहा है, और जो अनुचित है) वर्गीकरण करके विभिन्न जातियोंमें बाँटा जाता है तथा उनके धन्धे, उनकी सामाजिक स्थिति और घरेलू सुविधाओं- को देखकर और उनकी स्पष्ट मर्यादा बांधकर उन्हें जुदा-जुदा केन्द्रोंमें रहनेके लिए स्थान दिया जाता है, जैसा कि हमारी मातृभूमिमें किया जाता है, तब वहाँ यह सम्भव नहीं होता कि कोई मनुष्य अपनी आदतें बदल देनेपर लोगोंकी निगाहसे बहुत दिनोंतक बचा रह सके।