पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 29.pdf/४७५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

१८६. पत्र : एस्थर मैननको

साबरमती आश्रम,

१० फरवरी, १९२६

रानी बिटिया,

तुम्हारा पत्र और मैननका भेजा एक पार्सल भी मिला। पार्सलकी दवाओंके सम्बन्ध में कोई हिदायत साथ नहीं है; हाँ, यह जरूर कहा गया है कि पहले चूर्ण लिया जाये और बोतलमें मलेरियाकी दवा है। जहाँतक मेरा अपना सवाल है, फिलहाल मैं मलेरियासे मुक्त हूँ । यदि फिर उसका आक्रमण हुआ तो भी कह नहीं सकता, मैं यह दवा ले सकूँगा या नहीं, क्योंकि, जैसा कि तुम जानती हो, चाहे दवा हो या भोजन, मैं २४ घंटोंमें पाँचसे अधिक चीजें नहीं लेता। इन आयुर्वेदिक दवाओं में प्रायः दर्जनों चीजें मिली रहती हैं। इसलिए वे चाहे कितनी ही लाभदायक क्यों न हों, मेरे लिए तो बिलकुल बेकार हैं। किन्तु मलेरिया यहाँ बहुतोंको होता रहता है। यदि मुझे हिदायतें मिल जायें तो मैं मैंननकी दवाका उन लोगोंपर खुशीके साथ प्रयोग करके देखूंगा। इसलिए उनसे कहना कि वे मेरे पास कृपया हिदायतें भेज दें; और यदि उन्हें दवाका नुस्खा मालूम हो तो वह भी सूचित कर दें।

अब मैं मित्रतापर आता हूँ। तुमने “मित्र" शब्दका उपयोग तीन विभिन्न अर्थोंमें किया है। यदि हममें क्षमता हो तो हम ईसा-जैसे मित्र बन सकते हैं। यहाँ मित्रका अर्थ है दयालु सहायक। जो लोग हमसे बड़े हैं उन लोगोंके तथा हमारे बीचकी मित्रता भी, एकतरफा चीज है। पिता अपने बच्चोंका मित्र होता है, उसे होना भी चाहिए। यह अच्छोंकी संगतिके अर्थमें भी प्रयुक्त है, इसे संस्कृतमें सत्संग कहते हैं। मैंने जिस मित्रताके बारेमें लिखा है वह है दो या दोसे अधिक व्यक्तियोंके बीचकी घनिष्ठता - घनिष्ठता जिसमें कोई दुराव-छिपाव नहीं होता। इसमें सहायता पारस्परिक रहती है; और यह सहायता उद्देश्य न होकर मित्रताके परिणामके रूप में प्रकट होती है। यह मित्रता घटित होती है एक अकथनीय आकर्षणके कारण। दो व्यक्तियोंकी इस प्रकारकी अनन्य मैत्रीको मैंने अवांछनीय और ईश्वरके साथ ऐक्य करनेमें बाधक माना है। जिस व्यक्तिका वर्णन मैंने अपनी 'आत्मकथा 'में किया है उसके और मेरे बीच इसी प्रकारकी मित्रता थी।

क्या तुम्हें कताईमें सहज दिलचस्पी नहीं होती? यदि तुम कताई करती हो तो मुझे तुमसे आशा करनी चाहिए कि तुम उसे इसलिए करोगी कि तुम्हारी उसमें दिलचस्पी है। यदि तुम्हारे मनमें उसके प्रति लगाव है, तो उसकी कार्यविधिको अच्छी तरहसे सीख लो और अपने चरखेको उसी प्रकार बिलकुल ठीक हालतमें रखो जिस प्रकार रसोई बनाने में दिलचस्पी रखनेके कारण तुम अपने स्टोव या अँगीठीको रखती हो।

२९—२९