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दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास

१८८०-९० में ट्रान्सवाल और ऑरेन्ज फ्री स्टेट बोअर प्रजातन्त्र थे । इन प्रजा- तन्त्रोंमें हन्शियोंको कोई अधिकार प्राप्त नहीं थे। सारी सत्ता गोरे लोगोंके ही हाथमें थी ।' हिन्दुस्तानी व्यापारियोंने सुन रखा था कि वे बोअरोंसे भी व्यापार कर सकते हैं। बोअर लोग सरल, भोले और आडम्बरहीन होते हैं। वे हिन्दुस्तानी व्यापारि- योंसे माल खरीदने में लजाते नहीं हैं। इस कारण कुछ हिन्दुस्तानी व्यापारी ट्रान्सवाल और ऑरेन्ज फ्री स्टेटकी ओर भी गये और वहाँ उन्होंने दूकानें खोलीं। उन दिनों वहाँ रेलें नहीं थीं, इसलिए व्यापारमें लाभकी और भी अधिक सम्भावना थी। व्यापा- रियोंकी यह कल्पना ठीक निकली और बहुतसे बोअर और हब्शी उनका माल खरीदने लगे। अब रह गया केप कालोनी उपनिवेश । कुछ हिन्दुस्तानी व्यापारी वहाँ भी पहुँचे और खासी कमाई करने लगे। इस प्रकार चारों उपनिवेशोंमें थोड़े-बहुत हिन्दु- स्तानी फैल गये ।

इस समय दक्षिण आफ्रिकामें स्वतन्त्र हिन्दुस्तानियोंकी संख्या चाली और पचास हजारके बीचमें है तथा मुक्त भारतीय और उनकी सन्तानोंकी संख्या लगभग एक लाख है।

अध्याय ४

मुसीबतोंका सिंहावलोकन ( १ )

नेटाल

नेटालके गोरे जमींदारोंको तो सिर्फ गुलाम ही चाहिए थे । उनको ऐसे मजदूर अनुकूल पड़ ही नहीं सकते थे जो गिरमिट पूरी होनेपर स्वतन्त्र हो जायें और थोड़ी मात्रामें भी उनसे स्पर्धा करें। गिरमिटिये यद्यपि हिन्दुस्तानमें खेतीके कार्यमें सफल न होनेसे नेटाल गये थे, फिर भी वे ऐसे नहीं थे कि उनको खेतीका कोई ज्ञान न हो अथवा वे जमीन या खेतीको कीमत न समझते हों। उन्होंने देखा कि यदि वे नेटालमें साग-भाजी बोयें तो बहुत कुछ पैदा कर सकते हैं और यदि एक छोटा-सा जमीनका टुकड़ा भी ले लेते हैं तो उसमें खेती करके अपेक्षाकृत अधिक पैसा कमा सकते हैं। इसलिए बहुतसे गिरमिटियोंने मुक्त होनेपर कोई-न-कोई छोटा-मोटा धन्धा आरम्भ कर दिया। इससे कुल मिलाकर नेटाल-जैसे देशके लोगोंको लाभ ही पहुँचा। वहाँ चतुर किसानोंके अभावमें साग-भाजी पैदा नहीं होती थी, वह पैदा होने लगी या जहाँ साग-भाजी बहुत कम पैदा होती थी, वह बड़ी मात्रामें पैदा होने लगी। इससे साग-भाजियोंकी कीमतें बिलकुल कम हो गईं; किन्तु यह बात धनी गोरे किसानोंको अच्छी नहीं लगी । उनको लगा कि अबतक जिस खेतीमें केवल उनका इजारा था उसमें अब भागी दार पैदा हो गये हैं। इस कारण उन्होंने इन गरीब गिरमिटियोंके

१. ये दो वाक्य अंग्रेजीसे अनूदित हैं।

२. यह अनुच्छेद अंग्रेजीसे लिया गया है। मूल गुजराती में इसके स्थानपर निम्न पक्तियाँ है: “यह लिखते समय वहां स्वतन्त्र भारतीयोंकी संख्या में कुछ कमी ही हुई होगी किन्तु वृद्धि तो बिलकुल नहीं हुई ! ”