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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

विरूद्ध आन्दोलन शुरू कर दिया। पाठकोंको यह जानकर आश्चर्य होगा कि वे लोग जहाँ एक ओर ज्यादासे ज्यादा मजदूरोंकी मांग करते और जितने हिन्दुस्तानी गिर- मिटिया आते थे उनको तुरन्त ही खपा लेते थे, वहाँ दूसरी ओर उनपर अनेक प्रकारके दबाव डालने के लिए आन्दोलन करते थे। गिरमिटियोंको उनकी चतुराई और तनतोड़ मेहनतका यह बदला मिला।

इस आन्दोलनमें विभिन्न पक्षोंने विभिन्न माँगें रखीं। एक पक्षने यह माँग की कि गिरमिटसे मुक्त गिरमिटिये फिर हिन्दुस्तान भेज दिये जायें, पुराने करारका रूप बदल दिया जाये और नये करारके अन्तर्गत आनेवाले नये गिरमिटियोंपर यह शर्त लागू की जाये कि वे गिरमिट खतम होनेपर वापस हिन्दुस्तान चले जायेंगे; अथवा फिरसे करार करके गिरमिटिया बन जायेंगे। एक दूसरे पक्षने कहा कि जो लोग गिरमिटसे मुक्त होकर फिर गिरमिटमें न बँधना चाहें उनसे काफी अधिक वार्षिक व्यक्ति कर लिया जाये । उद्देश्य इन दोनों पक्षोंका एक ही था अर्थात् यह कि येन केन प्रकारेण गिरमिटियोंके वर्गको नेटालमें स्वतन्त्र होकर न रहने दिया जाये । गोरोंका यह हो-हल्ला इतना बढ़ा कि अन्तमें नेटालकी सरकारको एक आयोग' नियुक्त करना पड़ा। ये दोनों ही माँगें बिलकुल अनुचित थीं और चूंकि गिरमिटियोंके रहनेसे आर्थिक दृष्टिसे सभी लोगोंको लाभ ही लाभ था, इसलिए आयोगके सम्मुख जो स्वतन्त्र गवा- हियाँ दी गई वे सभी उन दोनों मांगोंके विरुद्ध रहीं । अतः विरोधी पक्षकी दृष्टिसे इस आन्दोलनका तात्कालिक परिणाम तो कुछ भी नहीं निकला; किन्तु जैसे आग बुझा दिये जानेपर भी उसके कुछ निशान रह जाते हैं वैसे ही नेटाल सरकारपर भी इस आन्दोलनका प्रभाव पड़े बिना न रहा । प्रभाव न रहता, यह हो भी कैसे सकता था। नेटालकी सरकार मुख्यतः धनिक वर्गकी समर्थक थी। उसने हिन्दुस्तानकी सर- कारसे पत्र-व्यवहार आरम्भ किया और दोनों पक्षोंके सुझाव उसके पास भेजे। किन्तु हिन्दुस्तानकी सरकार ऐसे सुझावोंको, जिनसे गिरमिटिये सदाके लिए गुलामीमें बँध जायें एकाएक कैसे स्वीकार कर सकती थी। हिन्दुस्तानियोंको गिरमिटिये बनाकर इतनी दूर भेजने का एक कारण अथवा बहाना यह भी बताया जाता था कि गिरमिटिये गिरमिट पूरी होनेके बाद स्वतन्त्र होकर अपनी शक्तिका पूरा विकास करके अपनी आर्थिक स्थिति सुधार सकेंगे। उस समय नेटाल शाही उपनिवेश था इसलिए उपनिवेश कार्या- लय भी इस उपनिवेशके शासनके प्रति पूर्ण उत्तरदायी माना जाता था, अतः वह नेटालकी इस अन्यायपूर्ण इच्छा की पूर्ति में कोई सहायता नहीं कर सकता था। इस कारण और इस प्रकारके दूसरे कारणोंसे नेटालमें उत्तरदायी शासनके लिए आन्दोलन प्रारम्भ किया गया और उसको १८९३-९४में इस प्रकारकी शासन-सत्ता मिल गई; और नेटालने अपनी माँगें प्रबल रूपसे सामने रखना आरम्भ कर दिया। उपनिवेश कार्यालयको भी नेटालकी किसी भी तरह की माँगें स्वीकार करनेमें कोई कठिनाई नहीं बची थी। फलतः नेटालकी नई सरकारने हिन्दुस्तानकी सरकारसे बातचीत करनेके लिए अपना प्रतिनिधि भेजा। मांग यह थी कि प्रत्येक गिरमिट-मुक्त हिन्दुस्तानीपर २५

१. भारतीय प्रवासी आयोग; देखिए खण्ड १, पृ४ ३८१ ।