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दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास

किया गया। इस विधेयककी बात जब हिन्दुस्तानी नेताओंके कानोंमें पड़ी तो वे चौंके । वे राष्ट्रपति क्रूगरके पास गये । स्वर्गीय राष्ट्रपतिन उनको घरमें घुसने भी नहीं दिया । घरके आँगनमें खड़े-खड़े ही उन्होंने उनकी थोड़ी-बहुत बात सुनी। उन्होंने उसके बाद कहा : 'आप तो इस्माइलको सन्तान हैं, इसलिए आप ईसाको सन्तानकी गुलामी करनेके लिए ही जन्मे हैं। हम तो ईसाकी सन्तान माने जाते हैं, इसलिए आपको हमारे बराबर अधिकार तो दिया ही नहीं जा सकता। हम आपको जो-कुछ देते हैं आपको उसीसे सन्तोष मानना चाहिए' इसमें कुछ द्वेष या रोष था हम ऐसा नहीं कह सकते। राष्ट्रपति ऋगरकी शिक्षा ही इस प्रकारकी हुई थी । उनको बचपन में 'बाइबिल' के पुराने करारमें दी हुई बातें पढ़ा दी गई थीं। उनका उनमें विश्वास था । यदि कोई मनुष्य जैसा उसका विश्वास है वैसा शुद्ध मनसे कहे तो इसमें उसको दोष कैसे दिया जा सकता है ? किन्तु शुद्ध हृदयसे उत्पन्न अज्ञानका असर भी बुरा तो होता ही है। परिणाम यह हुआ कि सन् १८८५ में विधानसभाने जल्दी-जल्दी कुछ इस भावसे एक बहुत कड़ा कानून पास कर दिया, मानो हजारों हिन्दुस्तानी ट्रान्सवालमें घुसकर लूटपाट करनेके लिए मौकेकी तलाशमें हों । अंग्रेज राजदूतको हिन्दुस्तानी नेताओंकी प्रेरणासे इस कानूनके विरुद्ध कदम उठाना पड़ा। मामला उपनिवेश मन्त्रीके पास तक गया। कानूनमें कहा गया था कि उपनिवेशमें आनेवाले हिन्दुस्तानियोंसे प्रतिव्यक्ति २५ पौंड पंजीयन शुल्कके लिये जायें। वे इसके अनुसार एक इंच भी जमीन नहीं ले सकते थे और मतदाता तो बन ही नहीं सकते थे। यह सब इतना अनुचित था कि ट्रान्सवालकी सरकार तर्कसे उसका बचाव नहीं कर सकती थी। ट्रान्सवालको सरकार और ब्रिटिश सरकारके बीच एक संधि हुई थी जो लन्दन-समझौतेके नामसे प्रसिद्ध थी। उसकी १४ वीं धारामें यह शर्त थी कि उपनिवेशमें ब्रिटिश प्रजाजनोंके अधिकारोंकी रक्षा की जायेगी। ब्रिटिश सरकारने इस धाराके आधारपर इस कानूनका विरोध किया। ट्रान्सवालकी सरकारने यह तर्क दिया कि जो कानून बनाया गया है उसपर ब्रिटिश सरकार स्वयं पहले प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष स्वीकृति दे चुकी है।

इस प्रकार दोनों पक्षोंमें मतभेद होनेके कारण यह विवाद पंचोंके सम्मुख गया। इसमें पंचायतने जो फैसला दिया वह निरर्थक सिद्ध हुआ; उसने दोनों पक्षोंको प्रसन्न रखनेका प्रयत्न किया । परिणाममें हिन्दुस्तानियोंकी हानि ही हुई। लाभ उससे केवल इतना ही हुआ कि जितनी हानिकी आशंकाथी उतनी हानि नहीं हुई। इस पंच-निर्णयके अनुसार सन् १८८६ में कानूनमें सुधार किया गया। इसके अनुसार आनेवाले हिन्दु-

१. हजरत इब्राहीमकी हाजरा (दासी) से उत्पन्न पुत्र। मुसलमान इन्हींकी सन्तान बताये जाते हैं। । मुहम्मद साहब इन्हींके वंशमें उत्पन्न हुए थे।

२. हजरत इब्राहीमकी ज्येष्ठा पत्नी साराके पुत्र इशाकके बेटे ।

३. देखिए खण्ड १, पृष्ठ १७७-७८।

४. देखिए खण्ड १, पृष्ठ १८९-२११ ।

५. देखिए खण्ड २, पृष्ठ ७०-७१ ।