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दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास,

लिए बहुतसे स्वयंसेवक - -यहाँतक कि अपना पैसा खर्च करके काम करनेवाले भी मिल गये । उसमें गिरमिट-मुक्त हिन्दुस्तानियोंकी तरुण-पीढ़ीने भी उत्साहपूर्वक भाग लिया। ये सभी युवक अंग्रेजी पढ़े-लिखे थे और उनकी लिखावट भी सुन्दर होती थी। उन्होंने नकलें तैयार करने आदिका काम दिन-रात एक करके बहुत लगनसे किया। एक महीने के भीतर-भीतर १०,००० हिन्दुस्तानियोंके हस्ताक्षर करवा कर लॉर्ड रिपनको अर्जी' भेज दी गई और इस प्रकार मेरा तात्कालिक काम पूरा हो गया ।

मैंने देश जानेकी छुट्टी माँगी; किन्तु लोगोंको इस कार्यमें इतनी रुचि पैदा हो गई थी कि वे अब मुझे जाने ही नहीं देना चाहते थे। उन्होंने कहा : आप ही तो हमें समझाते हैं कि यह हमें यहाँसे बिलकुल निकालनेकी पहली कार्रवाई है। इंग्लैंडसे क्या जवाब आता है यह कौन जानता है ? आपने हमारा उत्साह तो देख लिया है। हम काम करनेके लिए तैयार हैं। हमारी काम करनेकी इच्छा भी है। हमारे पास पैसा भी है, किन्तु रास्ता दिखानेवाला न हो तो सारा किया-कराया बेकार हो जायेगा । इसलिए हम तो यह मानते हैं कि यहाँ रहना आपका धर्म है।" मुझे भी लगा कि कोई स्थायी संस्था बन जाये तो अच्छा हो । किन्तु मैं रहूँ कहाँ और कैसे ? उन्होंने मुझे वेतन देनेका प्रस्ताव किया; किन्तु मैंने वेतन लेना बिलकुल अस्वीकार कर दिया। भारी वेतन लेकर सार्वजनिक कार्य नहीं किया जा सकता और तिसपर मैं ठहरा उस कार्यका प्रारम्भ करनेवाला । मेरे उस समयके विचारके अनुसार मुझे इस ढंगसे रहने की जरूरत थी जो बैरिस्टरको शोभा दे और हिन्दुस्तानी जातिकी प्रतिष्ठाके अनुरूप हो । इसका अर्थ था काफी खर्चीला रहन-सहन। लोगोंपर वजन डालकर संघर्षके लिए पैसा लेना और संघर्षके साथ अपनी आजीविकाको जोड़ना दो विरोधी वस्तुओंको जोड़ने-जैसा होता। उससे मेरी काम करनेकी शक्ति भी घट जाती। इस प्रकार के अनेक कारणोंसे मैंने सार्वजनिक सेवा के लिए पैसा लेनेसे साफ इनकार कर दिया। किन्तु मैंने यह सुझाव दिया कि यदि आपमें से कुछ प्रमुख व्यापारी मुझे अपना अदालती काम देते रहें और उसके लिए मुझे एक वर्षका पेशगी पारिश्रमिक दे दें तो मैं रुकनेके लिए तैयार हूँ। हम एक वर्षतक एक-दूसरेका काम देखें और उसे जाँच कर ठीक जान पड़े तो व्यवस्थाको आगेके लिए जारी रखें। यह सुझाव सबको पसन्द आ गया ।

मैंने वकालत करनेकी सनदके लिए अर्जी दी। वहाँके वकील मण्डलने मेरी इस अर्जीका विरोध किया। तर्क यह था कि नेटालके कानूनके मंशाके मुताबिक काले अथवा गेहुँए रंगके लोगोंको वकालत करनेकी सनद नहीं दी जा सकती। मेरी अर्जीका समर्थन वहाँके प्रसिद्ध वकील स्व० श्री एस्कम्बने किया जो नेटालके महान्यायवादी थे। बादमें यही श्री एस्कम्ब उपनिवेशके प्रधान मन्त्री भी बने थे । सामान्यतः लम्बे अर्सेसे ऐसा रिवाज चला आता है कि वकालतकी सनदकी अर्जीको प्रार्थीकी ओरसे सबसे प्रमुख विधिशास्त्री बिना फीस लिए अदालतमें पेश करता है। इस रिवाजके अनुसार श्री एस्कम्बने मेरी वकालतकी सनदकी अर्जी पेश करना स्वीकार कर लिया।

१. देखिए खण्ड १, पृ० ११७१२८।


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