पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 29.pdf/६४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३८
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

वे दादा अब्दुल्लाके बड़े वकील भी थे। वकील मण्डलके तर्कको बड़ी अदालतने अस्वीकार कर दिया और मेरी अर्जी स्वीकार कर ली गई । इस प्रकार न चाहने पर भी वकील मण्डलका विरोध मेरी ख्यातिका दूसरा कारण बन गया। दक्षिण आफ्रिकाके अखबारोंने वकील-मण्डलकी हँसी उड़ाई और कुछ अखवारोंने मुझे बधाई भी दी ।

संघर्षकी दृष्टिसे भारतीयोंकी जो कामचलाऊ समिति नियुक्त की गई थी उसे स्थायी रूप दे दिया गया। मैंने तबतक भारतीय कांग्रेसका कोई अधिवेशन देखा तो नहीं था, किन्तु उसके अधिवेशनोंका विवरण पढ़ा था। मैंने भारतके पितामह दादाभाई नौरोजी के दर्शन भी किये थे और मेरे मनमें उनके प्रति श्रद्धा थी। इसलिए मैं कांग्रेसका भक्त तो था ही और उसका नाम भी लोकप्रिय करना चाहता था। नया युवक अपने द्वारा नींव रखी गई संस्थाका नया नाम क्यों ढूंढ़े। उसमें भूल हो जानेकी भी काफी आशंका थी। इसलिए मैंने नई संस्थाका नाम 'नेटाल भारतीय कांग्रेस' रखनेकी सलाह दी। मैंने अपना कांग्रेस-सम्बन्धी अधूरा ज्ञान जैसा बन पड़ा लोगोंपर प्रकट किया और १८९४ के मई या जून मासमें हमारी इस कांग्रेसकी स्थापना हो गई। हिन्दुस्तानकी संस्था और इस संस्थांमें इतना अन्तर था कि नेटाल कांग्रेसकी बैठक सदा होती रहती थीं। जो लोग वर्षमें कमसे-कम ३ पौंड दे सकें वे इसके सदस्य हो सकते थे। इससे ज्यादा कोई जितना भी दे वह स्वीकार कर लिया जाता था। अधिक लेनेका आग्रह भी बहुत किया गया । सालमें २४ पौंड देनेवाले ६ या ७ सदस्य थे। बारह पौंड देनेवाले सदस्योंकी संख्या तो खासी बड़ी थी । हमने एक महीनेमें तीन सौ सदस्य बना लिए। इनमें हिन्दू, मुसलमान, पारसी और ईसाई सभी धर्मोंके और जिन-जिन प्रान्तोंके लोग वहाँ थे उन सभीके प्रतिनिधि सम्मिलित थे। पहले सालमें बहुत उत्साहसे काम हुआ । सेठ लोग अपनी-अपनी गाड़ियाँ लेकर दूर-दूरके शहरोंमें नये सदस्य बनाने के लिए और रुपया इकट्ठा करनेके लिए जाते थे। सभी लोग माँगते ही रुपया नहीं देते थे । उनको समझानेकी जरूरत होती थी । उनको इस प्रकार सब बातें समझाने से एक प्रकारका राजनैतिक शिक्षण भी हो जाता था और लोग वास्तविकतासे परिचित हो जाते थे। महीनेमें एक बार तो कांग्रेस की बैठक भी होती ही थी । उसमें महीनेका पाई-पाईका खर्च पेश किया जाता था और फिर उसे स्वीकार किया जाता था। महीनेमें जो घटनाएँ होती थीं उनपर भी चर्चा होती थी और वह कार्रवाई किताबमें दर्ज की जाती थी । सदस्य तरह-तरहके सवाल पूछते थे । नये कार्यों के सम्बन्धमें विचार किया जाता था। इस सबसे उन लोगोंको भी जो सभामें कभी नहीं बोले थे, बोलनेका अच्छा अभ्यास हो जाता था। वे भाषण भी विचारपूर्वक ही देते थे। इन सब बातोंसे उनको नया अनुभव मिलता था। इसमें लोगोंने बहुत रुचि दिखाई। आखिर समाचार आया कि लॉर्ड रिपनने नेटालके इस विधेयक को अस्वीकार कर दिया है। इससे लोग बहुत खुश हुए और उनका आत्मविश्वास बहुत बढ़ गया।

१. देखिए खण्ड १, पृष्ठ १३०, जिसके अनुसार कांग्रेसकी स्थापना २२ अगस्त, १८९४ को हुई थी।

Gandhi Heritage Portal