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दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास

जिस तरह बाहरी काम किया जा रहा था, उसी तरह हिन्दुस्तानी समाजके भीतर भी काम करनेका आन्दोलन किया जा रहा था । दक्षिण आफ्रिकाके गोरे हमारे रहन-सहनको लेकर समस्त आफ्रिकामें बड़ा आन्दोलन मचाये हुए थे । हिन्दुस्तानी बहुत गंदे होते हैं, वे कंजूस हैं, जिस मकानमें व्यापार करते हैं, उसीमें रहते हैं, उनके घर मांद-जैसे होते हैं और वे अपने सुखके लिए भी पैसा खर्च नहीं करते. ऐसे कंजूस और गंदे लोगोंसे ईमानदार, अधिक जरूरतमन्द और उदार गोरे व्यापारी मुकाबला कैसे कर सकते हैं; वे सदा यही तर्क गोरी जनताके सामने रखते। इसलिए घर साफ रखने, घर और दुकान अलग-अलग रखने, कपड़े साफ रखने और अधिक आमदनीवाले व्यापारियोंके योग्य रहन-सहन रखनेके सम्बन्धमें कांग्रेसकी सभाओं में विवेचन और वादविवाद होते थे और सुझाव दिये जाते थे। सब काम मातृभाषामें ही किया जाता था।

पाठक सोच सकते हैं कि इससे लोगोंको सहज ही कितनी व्यावहारिक शिक्षा और राजनैतिक जानकारी मिल जाती होगी। कांग्रेसके अन्तर्गत ही गिरमिट-मुक्त हिन्दु- स्तानियोंके बाल-बच्चोंके लिए अर्थात् अंग्रेजी-भाषी नेटालमें उत्पन्न हिन्दुस्तामी नवयुवकोंके लिए एक शिक्षण संस्था भी खोली गई थी। उसमें फीस थोड़ी रखी गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य नवयुवकोंको इकट्ठा करना, उनमें हिन्दुस्तानके प्रति प्रेम उत्पन्न करके स्वदेशका सामान्य ज्ञान देना था। इसके अतिरिक्त इसका उद्देश्य यह भी था कि स्वतन्त्र हिन्दुस्तानी व्यापारी उनको अपना भाई समझते हैं यह दिखा दिया जाये और व्यापारियोंमें भी उनके प्रति आदर-भाव उत्पन्न किया जाये। कांग्रेसके पास अपना खर्च चलाने के बाद एक बड़ी रकम जमा हो गई थी। उस रकमसे जमीन खरीदी गई। इस जमीनकी आमदनी नेटाल भारतीय कांग्रेसको अभीतक मिलती रहती है।

इतना विस्तृत विवरण मैंने जानबूझ कर ही दिया है। पाठक यह सब जाने बिना भलीभांति यह नहीं समझ सकते कि सत्याग्रहका जन्म सहज ही किस तरह हुआ और किस तरह हिन्दुस्तानी तैयार हुए। कांग्रेसपर जो संकट आये और सरकारी अधिकारियोंकी ओरसे जो हमले किये गये, उनसे वह किस तरह बची; यह इतिहास और इस प्रकारकी अन्य जानने योग्य बातें मुझे छोड़ देनी पड़ी हैं। किन्तु एक बात बताना जरूरी है। यह संस्था अतिशयोक्तिसे सदा बचती रहती थी और वह सदा हिन्दुस्तानियोंको उनके दोष बतानेका प्रयत्न करती थी । गोरोंके तर्कमें जितनी सच्चाई होती थी उतनी तुरन्त स्वीकारकी जाती थी और अपनी स्वतन्त्रता और स्वाभिमानकी रक्षा करते हुए गोरोंके साथ सहयोगके प्रत्येक अवसरका स्वागत किया जाता था । वहाँके अखबारोंमें हिन्दुस्तानियोंके आन्दोलनकी जितनी बातोंका प्रकाशन सम्भव दिखता, उतनी बातें उनको भेजी जाती थीं और उनमें हिन्दुस्तानियों- पर जो अनुचित आक्षेप किये जाते थे, उनका उत्तर भी दिया जाता था ।

जैसे नेटालमें 'नेटाल भारतीय कांग्रेस' थी वैसे ही ट्रान्सवालमें भी एक संस्था बनी। ट्रान्सवालकी संस्था' नेटालकी संस्थासे बिलकुल स्वतन्त्र थी। उनके संविधानोंमें

१. ब्रिटिश भारतीय संघ ।

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