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इतिहास ४१
दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका

मिला। उन्होंने मुझसे बड़ी शिष्टताके साथ बातचीत की। उन्होंने मुझे स्पष्ट बताया कि उनकी सहानुभूति उपनिवेशोंके पक्षमें है। किन्तु उन्होंने यह वचन दिया कि यदि मैं कुछ लिखूंगा तो वे उसे पढ़ेंगे और अपने पत्रमें उसपर सम्पादकीय भी लिखेंगे । मैंने इतना पर्याप्त समझा। मैंने देशमें आकर दक्षिण आफ्रिकाके हिन्दुस्तानियोंकी दशाके सम्बन्धमें एक चौपतिया' छपवाई। लगभग सभी अखबारोंने इसके सम्बन्धमें टिप्पणियाँ लिखी। इसकी दो आवृत्तियाँ निकालनी पड़ीं । देशके विभिन्न स्थानोंमें इसकी पाँच हजार प्रतियाँ भेजी गई थीं। मैंने इसी समय हिन्दुस्तानके नेताओंके दर्शन भी किये ; -- - मैं बम्बईमें सर फीरोजशाह मेहता, न्यायमूर्ति बदरुद्दीन तैयबजी, महादेव गोविन्द रानडे आदिसे, पूनामें लोकमान्य तिलक तथा उनके साथियों, और प्रो० भांडार- कर, गोपालकृष्ण गोखले तथा उनके साथियोंसे मिला। मैंने बम्बई, पूना और मद्रासमें भाषण भी दिये । मैं यहाँ इनका ब्यौरा देना नहीं चाहता।

किन्तु मैं पूनाका एक पुनीत संस्मरण दिये बिना नहीं रह सकता, यद्यपि हमारे विषयसे इसका कोई सम्बन्ध नहीं है। सार्वजनिक सभा लोकमान्यके हाथमें थी और दक्षिण सभा स्व० गोखलेके हाथमें। मैं पहले तिलक महाराजसे मिला। मैंने जब उनसे पूनामें सभा करनेकी बात कही तो उन्होंने मुझसे पूछा : क्या आप गोपाल रावसे मिल लिए हैं ?

मैं पहले तो उनकी बात नहीं समझा, इसलिए उन्होंने पूछा कि क्या आप गोखलेसे मिल चुके हैं ? आप उनको जानते हैं ?

मैंने कहा : मैं अभी तो नहीं मिला हूँ। मैं उनको नामसे ही जानता हूँ; किन्तु उनसे मिलनेका विचार है ।

लोकमान्य : तब आप हिन्दुस्तानकी राजनीतिसे परिचित नहीं जान पड़ते।

मैंने कहा : मैं शिक्षा समाप्त करनेके बाद हिन्दुस्तानमें कम ही रह पाया और राजनैतिक मामलों में तो पड़ा ही नहीं था। मैं इस क्षेत्रको अपनी शक्तिसे बाहर मानता था ।

लोकमान्य : तब तो मुझे कुछ बातें बता देनी चाहिए। पूनामें दो पक्ष हैं, एक सार्वजनिक सभाका और दूसरा दक्षिण सभाका ।

मैंने कहा: यह बात तो कुछ हदतक मुझे मालूम है ।

लोकमान्य : यहाँ सभा करना तो कोई बड़ी बात नहीं है। किन्तु मेरी समझमें आप तो अपना मामला सभी पक्षोंके सामने रखना चाहते हैं और सभी पक्षोंसे मदद लेना चाहते हैं। आपका यह विचार मुझे पसन्द है; किन्तु यदि आपकी सभामें हममें से कोई अध्यक्ष हुआ तो उसमें दक्षिण सभाके लोग नहीं आयेंगे और यदि अध्यक्ष दक्षिण सभाका हुआ तो हमारे पक्षमें से कोई नहीं पहुँचेगा। इसलिए आपको अध्यक्ष पदके लिए कोई तटस्थ व्यक्ति ढूंढ़ना चाहिए। मैं तो इस सम्बन्धमें सुझाव

१. देखिए खण्ड २, पृष्ठ १-५६ । पुस्तकका आवरण हरा होनेके कारण बादमें वह हरी पुस्तिकाके नामसे प्रसिद्ध हुई।

२. देखिए खण्ड २, पृष्ठ ७७-९०, ९९-१३३ और १४७-४८ ।

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