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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

ही दे सकता हूँ। कोई दूसरी सहायता नहीं दे सकता। आप प्रो० भाण्डारकरको ही दे सकता हूँ। कोई दूसरी सहायता नहीं दे सकता। आप प्रो० भाण्डारकरको तो जानते हैं ? न जानते हों तो भी उनके पास जायें । सम्भव है वे उसके लिए तैयार हो जायें। श्री गोखलेसे भी इस बातकी चर्चा करें और उनकी भी सलाह ले लें। बहुत करके वे भी मेरी जैसी ही सलाह देंगे। यदि प्रो० भाण्डारकर जैसे कोई सज्जन अध्यक्ष हों तो सभाका काम दोनों पक्ष अपने ऊपर ले लेंगे, इसका मुझे विश्वास है। इस कार्यमें आपको मेरी सहायता तो पूरी मिलेगी ही।

इस सलाह के अनुसार मैं गोखलेके पास गया। उनसे मेरी यह पहली भेंट थी। उन्होंने इसी भेंटमें मेरा मन जीत लिया, यह मैं अन्यत्र लिख चुका हूँ। जो सज्जन इसे देखना चाहें वे 'यंग इंडिया, " या 'नवजीवन ” उठाकर उसमें देख सकते हैं । लोकमान्यकी सलाह श्री गोखलेको भी पसन्द आई। मैं तुरन्त प्रो० भाण्डारकरके पास गया। मैंने उन विद्वान वयोवृद्ध सज्जनके दर्शन किये। उन्होंने नेटालकी कहानी ध्यानपूर्वक सुननेके बाद कहा, 'आपने तो देखा कि मैं सार्वजनिक जीवनमें चित् ही भाग लेता हूँ। और अब मैं बूढ़ा भी हो गया हूँ। फिर भी आपकी बातोंका मेरे मनपर बहुत प्रभाव पड़ा है। सभी पक्षोंकी सहायता प्राप्त करनेका आपका विचार मुझे पसन्द आता है। फिर आप हिन्दुस्तानकी राजनीतिसे अपरिचित भी जान पड़ते हैं, और नवयुवक हैं। इसलिए आप दोनों पक्षोंसे कह दें कि मैंने आपकी बात स्वीकार कर ली है। सभा होनेकी सूचना मुझे इन दोनों पक्षोंमें से कोई भी दे दे, मैं अवश्य आजाऊँगा । निदान पूनामें बड़ी अच्छी सभा हुई। उसमें दोनों पक्षोंके नेता सम्मिलित हुए और उन्होंने भाषण भी दिये।

फिर मैं मद्रास गया। वहाँ न्यायमूर्ति सुब्रह्मण्यम् अय्यरसे मिला। मैं श्री पी० आनन्दचारलु, 'हिन्दू' के तत्कालीन सम्पादक श्री जी० सुब्रह्मण्यम् और 'मद्रास स्टैण्डर्ड' के सम्पादक श्री परमेश्वरम् पिल्ले, प्रख्यात वकील श्री भाष्यम् आयंगार और श्री नॉर्टन आदिसे मिला। वहाँ भी सभा की गई। वहाँसे मैं कलकत्ता गया। वहाँ सुरेन्द्रनाथ बनर्जी, महाराजा ज्योतिन्द्रमोहन ठाकुर और 'इंग्लिशमैन' के सम्पादक स्व० श्री सैन्डर्स आदिसे भी मिला । वहाँ जब सभाकी तैयारी की जा रही थी तभी १८९६ के नवम्बर महीनेमें नेटालसे तार मिला, 'तुरन्त चले आओ।' मैं समझ गया कि हिन्दुस्तानियोंके विरुद्ध कोई-न-कोई नया आन्दोलन आरम्भ किया गया है। इसलिए मैं कलकत्तेका काम पूरा किये बिना ही वापस लौट आया और बम्बईसे जो पहला जहाज मिला, अपने परिवारके साथ उसीसे रवाना हो गया। इस जहाजको दादा अब्दुल्लाकी पेढ़ीने खरीद लिया था। नेटाल और पोरबन्दरके बीच जहाज चलानेका उद्योग उनकी पेढ़ीके अनेक उद्योगोंमें से एक था। इस जहाजका नाम 'कूरलैंड' था । इस जहाजके बाद उसी दिन पर्शियन कम्पनीका जहाज 'नादरी'

१ व २. १३ जुलाई १९२१ और २१ जुलाई १९२१ को; देखिए खण्ड २० ।

३. गांधीजीने इंग्लिशमैंन तथा स्टेट्समैनके प्रतिनिधियों से मुलाकात की थी। इंग्लिशमैनको लिखे गये पत्रके लिए देखिए खण्ड २, पृष्ठ १४९-५०।

४. तार पाकर गांधीजी इस भ्रममें थे कि उसका सम्बन्ध केप सरकारकी कार्यवाहीसे है। असली तार प्राप्त होनेपर उन्हें पता चला कि उसका सम्बन्ध ट्रान्सवालसे है। देखिए खण्ड २, पृष्ठ १४९-५० ।

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