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दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास

भी नेटालको रवाना हुआ। इन दोनों जहाजोंमें दक्षिण आफ्रिका जानेवाले कुल मिलाकर लगभग ८०० हिन्दुस्तानी थे।

मैंने हिन्दुस्तानमें जो हलचल की उसे इतना महत्त्व मिला कि उसके सम्बन्धमें बहुतसे मुख्य-मुख्य अखबारोंमें टिप्पणियाँ लिखी गई और रायटरने उसकी खबरें तारोंसे इंग्लैंड भेजी ।' यह बात मुझे नेटाल पहुँचनेपर मालूम हुई। जो तार इंग्लैंड भेजे गये थे, उनके आधारपर वहाँके रायटरके प्रतिनिधिने एक छोटा-सा तार दक्षिण आफ्रिकाको भी भेज दिया था । इस तारमें मेरे हिन्दुस्तानमें दिये गये भाषणोंका अत्युक्तिपूर्ण विवरण था। इस प्रकारकी अत्युक्ति बहुत बार की जाती है । यों यह सारी अत्युक्ति जान- बूझकर नहीं की जाती । अनेक कार्योंमें व्यस्त व्यक्ति किसी चीजको सतही ढंगसे पढ़ लेता है । और उनके कुछ अपने विचार तो होते ही है; उन विचारोंकी एक तसवीर भी उसके मनमें होती है । उसीके अनुसार वे उस विवरणका अपना एक सार तैयार कर डालते हैं। फिर इस सारके भी भिन्न-भिन्न जगहों में नये-नये अर्थ किये जाते हैं । और यह सब अनायास ही होता है । सभी सार्वजनिक प्रवृत्तियोंमें यह आशंका रहती ही है । और यही उनकी कसर है । मैंने हिन्दुस्तानमें नेटालके गोरोंपर आक्षेप किये और गिरमिटियोंपर लगाये गये तीन पौंडी करकी बहुत कड़ी आलोचना की। सुब्रह्मण्यम्' नामके जिस निरपराध गिरमिटियको उसके मालिकने मारा-पीटा था उसके घाव मैंने स्वयं देखे थे । उसके मामलेकी सारी कार्रवाई भी मेरे हाथसे हुई थी, इसलिए मैं अपनी योग्यताके अनुसार उसका यथावत् विवरण दे सका था। इस यथावत् विवरणका सार जब नेटाली गोरोंने पढ़ा तो वे मेरे विरुद्ध भड़क उठे। वैसे यह एक अजीब ही बात हुई क्योंकि मैंने जो कुछ नेटालमें लिखा था वह मेरे हिन्दुस्तानमें लिखी और कही गई। बातोंकी अपेक्षा अधिक तीखा और विस्तृत था । मैंने हिन्दुस्तानमें एक भी बात ऐसी नहीं कही थी जिसमें कोई अत्युक्ति हो । किन्तु मैं अनुभवसे इतना जानता था कि यदि हम अनजान श्रोता या पाठकके सामने किसी घटनाका वर्णन भाषण या लेखके रूपमें करें तो वह उसे कुछ बढ़ा-चढ़ाकर ही लेता है। इसी कारण मैंने हिन्दुस्तानमें नेटालका जो वर्णन किया था वह जानबूझकर थोड़ा-बहुत घटाकर ही किया था । किन्तु मैं नेटालमें जो कुछ लिखता था एक तो उसे बहुत कम गोरे पढ़ते थे और जो पढ़ते भी थे वे उसकी परवाह नहीं करते थे । किन्तु मेरे हिन्दुस्तानके भाषणोंके बारेमें इसके विपरीत प्रतिक्रियाकी सम्भावना थी और हुआ भी वैसा ही । रायटरके संक्षिप्त समाचारोंको तो हजारों गोरे पढ़ते थे। इसके अलावा जो बात तारसे विशेष रूपसे भेजने योग्य समझी गई हो उसका महत्त्व उसके असली महत्त्वसे अधिक माना जाता है। नेटालके गोरोंने सोचा कि यदि मेरे हिन्दुस्तानमें किये गये कामका असर जैसा समझते हैं वैसा हुआ हो तो गिरमिटकी प्रथा शायद बन्द ही हो जायेगी और फिर सैकड़ों गोरे मालिकोंको नुकसान पहुँचेगा। इसके अतिरिक्त उन्हें यह भी लगा कि मेरे भाषणोंसे हिन्दुस्तानमें नेटालके गोरोंकी बदनामी हुई है।

१. देखिए खण्ड २, पृष्ठ २००-२ ।

२. देखिए खण्ड २, पृष्ठ २२, वहाँ दिये गये विवरणके अनुसार इसका नाम बालसुन्दरम् था ।

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