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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इस प्रकार जब नेटालके गोरोंने अपनी उत्तेजित मानसिक अवस्थामें यह सुना कि मैं अपने कुटुम्बको लेकर 'कूरलैंड' जहाजसे दक्षिण आफ्रिका वापस आ रहा हूँ और उसमें ३०० या ४०० दूसरे हिन्दुस्तानी यात्री भी हैं तथा उसके साथ ही उतने ही अन्य भारतीय यात्री 'नादरी' जहाजमें आ रहे हैं तो इस समाचारने जलती आगमें घी का काम किया और उनका क्रोध और भी भड़क उठा। नेटालके गोरोंने एक बड़ी सभा की जिसमें लगभग सभी अग्रगण्य गोरे शामिल हुए। सभामें मुख्यतः मेरी और सामान्यतः हिन्दुस्तानी जातिकी कड़ी आलोचना की गई तथा 'कूरलैंड' और 'नादरी' के आनेको 'नेटालपर चढ़ाई 'करना' कहा गया । सभामें वक्ताओंने यही माना और यही विश्वास कराया कि मैं ८०० प्रवासियोंको अपने साथ लाया हूँ और यह नेटालको स्वतन्त्र हिन्दुस्तानियोंसे भर देनेकी दिशामें उठाया गया मेरा पहला कदम है। सभामें ससम्मति से यह प्रस्ताव पास किया गया कि दोनों जहाजोंके यात्रियोंको और मुझे उतरने न दिया जाये । यदि नेटालकी सरकार इन लोगोंको न रोके अथवा न रोक सके तो इसके लिए इसी दृष्टिसे गठित समिति कानूनको अपने हाथमें ले ले और बलपूर्वक हिन्दुस्तानियोंको उतरनेसे रोके । दोनों जहाज एक ही दिन नेटालके डर्बन बन्दरगाह में पहुँचे ।

पाठकोंको याद होगा कि सन् १८९६ में हिन्दुस्तानमें पहली बार प्लेगकी बीमारी फैली थी। नेटालकी सरकारके पास हमें कानूनके अनुसार वापस भेजने का उपाय नहीं था । तबतक प्रवेश प्रतिबन्धक कानून नहीं बनाया गया था । किन्तु नेटाल सरकार- की पूरी सहानुभूति उक्त ढंगसे गठित गोस समितिके साथ ही थी । एक सरकारी मन्त्री स्व० श्री एस्कम्ब इस समितिके संचालनमें पूरा हाथ भी बटा रहे थे । और वे ही समितिको भड़का भी रहे थे। यदि किसी जहाजमें छूतके किसी रोगका प्रकोप हो अथवा कोई जहाज ऐसी जगहसे आये जहाँ छूतका कोई रोग फैला हो तो बन्दर- गाह कानूनके अनुसार उस जहाजको एक विशेष अवधिके लिए अलग रोककर रखा जा सकता है । अर्थात् उस जहाजका स्थलसे सम्पर्क बन्द कर दिया जाता है एवं उस अवधितक यात्रियोंको और मालको उतरनेसे रोक दिया जाता है। इस प्रकारका प्रतिबन्ध विशुद्ध स्वास्थ्य रक्षाके नियमोंके अन्तर्गत और बन्दरगाहके डाक्टरकी आज्ञासे लगाया जा सकता है । इस प्रतिबन्धको लगानेका उपयोग अथवा दुरुपयोग नेटालकी सरकारने विशुद्ध राजनैतिक दृष्टिसे किया और इन जहाजोंमें छूतके रोगसे ग्रस्त कोई यात्री न होनेपर भी २३ दिनतक बन्दरगाहमें घुसने से रोक दिया। इस बीच उक्त समिति अपना काम करती रही। दादा अब्दुल्ला 'कूरलैंड' के मालिक और 'नादरी' के एजेंट थे । समितिने उनको बहुत धमकियाँ दी और जहाजोंको लौटा ले जानेके लिए तरह-तरहके लालच भी दिये । न लौटनेपर कुछने उनके व्यापारको नुकसान पहुँचानेका भय भी दिखाया । किन्तु पेढ़ीके भागीदार भीरु नहीं थे। उन्होंने धमकी देनेवालोंसे कहा : " इस बातपर हम जबतक हमारा सब व्यापार नष्ट नहीं हो जाता और हम बरबाद नहीं हो जाते तबतक लड़ेंगे। हम डरकर इन निर्दोष यात्रियोंको वापस ले जानेका अपराध कभी नहीं करेंगे । आप समझ रखिए कि यदि आपको अपने

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