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दक्षिण आफ्रिकाके सत्याग्रहका इतिहास

देशके विषयमें अभिमान है तो हम भी देशभक्तिसे शून्य नहीं हैं। इस पेढ़ीके पुराने वकील श्री एफ० ए० लॉटन भी साहसी और वीर थे ।

सौभाग्यसे इसी बीचमें सूरतके एक कायस्थ सज्जन और स्व० नानाभाई हरि- दासके भानजे डॉ० मनसुखलाल नाजर दक्षिण आफ्रिका में आ चुके थे। मैं उनको नहीं जानता था । वे वहाँ आये हुए हैं इसकी मुझे कोई खबर भी नहीं थी। शायद यह कहना जरूरी नहीं है कि 'नादरी' और 'कूरलैंड' के यात्रियोंको लानेमें मेरा कोई भी हाथ नहीं था। उनमें से ज्यादातर लोग दक्षिण आफ्रिकामें रहते चले आये थे और उनमें से अधिकांश ट्रान्सवाल जानेके लिए आये थे । गोरोंकी समितिने इन यात्रियोंको भी धमकी-भरी सूचनायें भेजीं। कप्तानोंने ये सूचनाएँ पढ़कर सुनायीं । उनमें साफ-साफ कहा गया था कि नेटालके गोरे उत्तेजित हो रहे हैं। उनकी मनो- दशाको जानते हुए भी यदि हिन्दुस्तानी यात्री बन्दरगाहमें उतरनेका प्रयत्न करेंगे तो बन्दरगाहपर खड़े हुए समितिके आदमी उनमें से हरएकको समुद्रमें ढकेल देंगे। इस सूचनाका अनुवाद 'कूरलँड'के यात्रियोंको मैंने सुनाया और 'नादरी 'के यात्रियोंको उसका अर्थ उसके किसी अंग्रेजी जाननेवाले यात्रीन समझाया। दोनों जहाजोंके यात्रियोंने वापस लौटनेसे साफ इनकार कर दिया। उन्होंने यह भी कहा कि बहुतसे यात्रियोंको तो ट्रान्सवाल जाना है और जो नेटालमें रुकना चाह रहे हैं वे भी ज्यादातर तो नेटालके पुराने बाशिन्दे ही हैं। किसी भी हालतमें उनमें से हरेकको कानूनके मुताबिक नेटालमें उतरनेका अधिकार है और वे समितिकी धमकी के बावजूद अपने अधिकारका दावा करनेके लिए यहाँ अवश्य उतरेंगे।

नेटालकी सरकार भी थक गई । अनुचित प्रतिबन्ध कितने दिन चल सकता था? तेईस दिन हो गये; और न दादा अब्दुल्ला डिगे और न हिन्दुस्तानी यात्री । इसलिए नेटालकी सरकार द्वारा हारकर २३ दिन बाद प्रतिबन्ध हटा दिया गया और जहाजोंको बन्दरगाहमें आनेकी अनुमति दे दी गई। इस बीच श्री एस्कम्ब समितिके क्रोधको समझा-बुझाकर शान्त करनेका प्रयत्न करते रहे। उन्होंने सभा बुलाकर लोगोंसे कहा, डर्बनके गोरोंने एकता और साहसका बहुत अच्छा परिचय दिया है। आपसे जितना बन सका आपने उतना किया। सरकारने भी आपकी सहायता की। उसने इन लोगों- को २३ दिनतक नहीं उतरने दिया। अपने मनोभाव और उत्साहका प्रदर्शन आप कर चुके; इतना काफी है। ब्रिटिश सरकारपर इसका असर गहरा होगा। आपके इस कार्यसे नेटाल सरकारका मार्ग सरल हो गया है। अब यदि आप बल प्रयोग करके एक भी हिन्दुस्तानी यात्रीको उतरनेसे रोकेंगे तो अपने कामको खुद ही नुकसान पहुँ- चायेंगे। उससे नेटाल सरकारकी स्थिति विषम हो जायेगी। फिर आप ऐसा करके भी इन लोगोंको उतरनेसे रोकनमें सफल न होंगे। इसमें यात्रियोंका तो कोई दोष भी नहीं है। उनमें स्त्रियाँ और बच्चे भी हैं। बम्बईसे जहाजमें बैठते वक्त उन्हें आपकी इस मनोदशाका कुछ भी पता नहीं था। इसलिए आप मेरी सलाह मानकर बिखर जायें और इन लोगोंको जहाजोंसे उतरनेमें तनिक भी रुकावट न डालें। किन्तु

१. इन्होंने बादमें दक्षिण आफ्रिकामें गांधीजीके साथ काम किया, देखिए खण्ड ५, पृष्ठ १८७-१९०।

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