पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 29.pdf/७३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४७
दक्षिण आफ्रिका सत्याग्रहका इतिहास

श्री लॉटन डर्बनके बहुत पुराने और प्रसिद्ध वकील थे। हिन्दुस्तान लौटनेसे पहले ही उनसे मेरे बहुत अच्छे सम्बन्ध बन गये थे। मैं अपने पेचीदा मामलोंमें उन्हींकी सहायता लेता था और बड़े वकीलके रूपमें प्रायः उन्हींको तय करता था। वे स्वयं साहसी और अच्छे ऊँचे पूरे कदके आदमी थे ।

हमारा रास्ता डर्बनके सबसे बड़े मुहल्लेमें होकर जाता था । हम जब रवाना हुए तब शाम साढ़े चार बजे होंगे। आकाशमें कुछ हल्के-हल्के बादल थे; किन्तु सूरजको ढकने लायक वे काफी थे । वहाँसे रुस्तमजीके मकानतक पैदल जानेकी दूरी कुछ नहीं तो एक घंटा लगने लायक तो जरूर थी। जहाजसे उतरते ही हमें कुछ लड़कोंने देख लिया। उनमें कोई बड़ी उम्रका आदमी तो नहीं था । बन्दरगाहपर सामान्यतः जितने लोग रहते हैं, उतने ही दिखाई देते थे। चूंकि मेरी जैसी पगड़ी थी वैसी पगड़ी कोई और नहीं पहनता था, इसलिए लड़कोंने मुझे तुरन्त पहचान लिया और 'गांधी,' 'गांधी', 'इसे मारो,' 'इसे घेर लो, ' की आवाजें लगाते हुए मेरी ओर आये । कुछ लड़के पत्थर भी फेंकने लगे। कुछ अधेड़ उम्र के गोरे भी उनके साथ आ मिले। धीरे-धीरे उपद्रवियोंकी संख्या बढ़ने लगी और श्री लॉटनको लगा कि पैदल चलते रहे तो जोखिममें पड़ जायेंगे । इसलिए उन्होंने एक रिक्शेवालेको आवाज दी। रिक्शा एक छोटी गाड़ी होती है, जिसे आदमी खींचता है । मैं तो कभी रिक्शा में बैठा नहीं था, क्योंकि जिस सवारीको आदमी खींचता हो उसमें बैठना मुझे बहुत बुरा लगता था। आज मुझे लगा कि मेरा रिक्शेमें बैठ जाना ठीक है । किन्तु जिसकी रक्षा ईश्वरको करनी है, वह डिगना भी चाहे तो ईश्वर उसे डिगने नहीं देता । इस तरहका अनुभव कठिनाईके समय में मुझे अपने जीवन में पाँच-सात बार हुआ है। मैं अपने धर्मसे नहीं डिगा, इसका श्रेय में बिलकुल नहीं ले सकता। रिक्शा कुली हब्शी ही होते हैं। लड़कोंने और बड़े लोगोंने रिक्शा कुलीको धमकी दी, इस आदमीको रिक्शेमें बिठायेगा तो रिक्शा चकनाचूर कर देंगे और तुझे मार डालेंगे।" इस कारण रिक्शा कुली 'खा' (नहीं) कहकर चलता बना और में रिक्शेमें बैठनेसे बच गया ।

अब हमारे सम्मुख पैदल चलते रहनेके सिवा दूसरा कोई रास्ता न बचा। भीड़ हमारे पीछे इकट्ठी हो गई। हम ज्यों-ज्यों आगे बढ़ते त्यों-त्यों भीड़ भी बढ़ती जाती । मुख्य सड़क वेस्ट स्ट्रीट आते-आते छोटे-बड़े सैकड़ों गोरे इकट्ठे हो गये। एक तगड़े आदमीने श्री लॉटनको अपनी अँकवारमें भरकर मुझसे दूर कर दिया और वे फिर मुझतक आ पहुँचनेकी स्थितिमें नहीं रहे । अब मुझपर गालियों, पत्थरों और जिसके हाथमें जो कुछ आया उसकी वर्षा होने लगी। उन्होंने मेरी पगड़ी गिरा दी। तभी एक हट्टे-कट्टे मोटे आदमीने आकर मुझे थप्पड़ मारा और ठोकर लगाई। मैं गश खाकर गिरनेवाला ही था कि रास्तेसे लगे हुए एक घरके अहातेकी जाली मेरे हाथमें आ गई। मैंने उसके सहारे थोड़ा दम लिया और ज्यों ही मुझे होश आया, मैं फिर चलने लगा। मैंने जीवित पहुँचनेकी आशा लगभग छोड़ ही दी थी। किन्तु मुझे इतनी बात ठीक-ठीक याद है कि उस समय भी मैं अपने मनमें इन मारनेवाले लोगोंको तनिक भी दोष नहीं दे रहा था ।

Gandhi Heritage Portal